कर्नाटक हाईकोर्ट ने पुलिस निरीक्षक को लगाई फटकार, मोरल पुलिसिंग से बचने की हिदायत दी
तारीख: 28 दिसंबर, 2021
स्रोत (Source): न्यूज 18 हिंदी
तस्वीर स्रोत : न्यूज 18 हिंदी
स्थान : कर्नाटक
कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच ने एक महिला और उसकी तीन साल की बच्ची को छह महीने तक जबरन पुनर्वास केंद्र में रखने के मामले में मलमरुती पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर सुनील बालासाहेब पाटिल और पुनर्वास केंद्र पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. इसके साथ ही कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को भविष्य में मोरल पुलिसिंग से बचने की भी हिदायत दी है.
न्यायमूर्ति एनएस संजय गौड़ा ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि महिला और उसकी बेटी को बंदी बनाने का कार्य दोनों के दिमाग और शरीर दोनों को कैद करने जैसा है. कोर्ट ने पुलिस के इस तरह के रवैये पर नाखुशी जाहिर करते हुए इसे मोरल पुलिसिंग माना है और यह भी कहा कि पुलिस निरीक्षक एक विवाहित व्यक्ति के जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. महिला ने पुनर्वास केंद्र से खुद को आजाद कराने के लिए याचिका दाखिल की थी.
कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिला को ऐसे केंद्र में बंदी बनाकर रखा गया जहां मानव तस्करी और दुष्कर्म के आरोपियों को रखा जाता है. पीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए निरीक्षक और पुनर्वास केंद्र पर एक लाख रुपये जुर्माना लगाने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि जुर्माने की राशि न्यायालय रजिस्ट्रार के समक्ष जमा करनी होगी ताकि इसे महिला की बेटी के बैंक खाते में फिक्सड डिपॉजिट के तौर पर जमा कराया जा सके और ब्याज महिला को मिल सके.
जानकारी के मुताबिक महिला की साल 2007 में शादी हुई थी. पति से विवाद होने पर महिला 21 मई 2021 को अपनी बेटी के साथ घर छोड़कर कहीं चली गई थी. इसके बाद उसके पति ने महिला की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी. पुलिस ने महिला को ढूंढ लिया और पुलिस निरीक्षक बालासाहेब पाटिल ने महिला और पति के बीच समझौता कराने की कोशिश की, लेकिन जब महिला नहीं मानी तो जबरन उसे बेटी सहित पुनर्वास केंद्र में बंद कर दिया गया. इस केंद्र में मानवी वाहतुक और दुष्कर्म के आरोपियों को रखा जाता है.
कोर्ट ने पुलिस निरीक्षक और महिला के बयान सुनने के बाद रेखांकित किया कि महिला पुनिर्वास केंद्र नहीं जाना चाहती थी और वह अपने पति के साथ भी नहीं रहना चाहती थी. महिला के मना करने के बावजूद उसे पुनर्वास केंद्र भेज दिया गया. इस मामले में पुलिस निरीक्षक ने कोई मानवता नहीं दिखाई और न ही संवेदनशीलता का परिचय दिया. कोर्ट ने माना कि महिला के बार बार इस पुनर्वास केंद्र से रिहा करने के आग्रह के बावजूद उसे बाहर नहीं जाने दिया गया और छह माह तक अवैध रूप से रखा गया.
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