बालक देश का भविष्य हैं, उनके प्रति लैंगिक हिंसा या उत्पीड़न के मामले में गंभीरता दिखानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
तारीख: 08 फरवरी, 2022
स्रोत (Source): टीवी9 भारतवर्ष
तस्वीर स्रोत : टीवी9 भारतवर्ष
स्थान : दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि बालकों के प्रति लैंगिक हिंसा या उत्पीड़न के मामलों में बहुत गंभीरता दिखानी चाहिए क्योंकि इनका शोषण मानवता और समाज के खिलाफ किया गया अपराध है. न्यायालय ने साफ किया कि ऐसे मामलों में आरोपी को कानून के अनुरूप सजा देकर एक संदेश देना चाहिए. न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court Of Uttarakhand) के आदेश को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की. उच्च न्यायालय ने चार साल की एक बालिका के प्रति लैंगिक हिंसा के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(आई) और लैंगिक अपराध के खिलाफ बालकों को संरक्षण देने वाले कानून (POSCO) की धारा पांच और छह के तहत एक व्यक्ति को सजा सुनाई थी.
पीठ ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति ने पोकसो कानून के तहत अपराध किए हैं, तो उसके खिलाफ सख्ती दिखानी चाहिए. पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में नरमी नहीं दिखानी चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्ति पीड़िता का पड़ोसी था और अपराध के समय उसकी उम्र करीब 65 साल थी. अदालत ने कहा कि एक पड़ोसी के रूप में आरोपी का कर्तव्य था कि वह लड़की की मासूमियत और कमजोरी का फायदा उठाने के बजाय अकेले होने पर उसकी रक्षा करे. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जहां विश्वास के साथ विश्वासघात किया गया है और सामाजिक मूल्यों को नुकसान पहुंचाया गया, इसलिए आरोपी किसी तरह की नरमी का पात्र नहीं हैं.
पीठ ने कहा, ‘बालक हमारे देश के अनमोल मानव संसाधन हैं, वह देश का भविष्य हैं, कल की आशा उन पर टिकी हुई है. लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में एक बालिका बहुत कमजोर स्थिति में है. उसके शोषण के विभिन्न तरीके हैं, जिनमें लैंगिक हिंसा और उत्पीड़न शामिल है.’ शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी की उम्र फिलहाल 70-75 साल है और यह भी बताया गया कि वह तपेदिक रोग से पीड़ित है. इसलिए न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा को 15 साल के कठोर कारावास में परिवर्तित कर दिया, लेकिन जुर्माने को बरकरार रखा.
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