पत्नी के साथ बलात्कार करने वाला पति, आईपीसी की धारा 376 के तहत सजा के लिए उत्तरदायी : वैवाहिक बलात्कार मामले पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा
तारीख: 24 मार्च, 2022
स्रोत (Source): लाइव लॉ हिंदी
तस्वीर स्रोत : लाइव लॉ
स्थान : कर्नाटक
कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को एक पति द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत उसके खिलाफ लंबित बलात्कार के आरोपों को हटाने की मांग की थी. उसकी पत्नी की शिकायत पर उसके खिलाफ यह मामला दर्ज किया गया है. जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने इस बात पर जोर दिया कि एक पुरुष जो एक महिला से अच्छी तरह परिचित है और धारा 375 में संशोधन से पहले या बाद में पाए जाने वाले सभी अवयवों को पूरा करता है, उसके खिलाफ धारा 376 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए कार्रवाई की जा सकती है. जिससे यह स्थापित होता है कि कोई पुरुष किसी महिला का लैंगिक उत्पीड़न या बलात्कार करता है, तो वह आईपीसी की धारा 376 के तहत सजा के लिए उत्तरदायी हैै.
‘वरिष्ठ वकील का तर्क है कि यदि पुरुष पति है और अगर वह वही कार्य करता है जो किसी अन्य पुरुष ने किया हो तो उसे छूट दी जाती है. मेरे विचार में, इस तरह के तर्क का समर्थन नहीं किया जा सकता है. आदमी एक आदमी है;एक कृत्य या कार्य एक कार्य ही है; बलात्कार एक बलात्कार ही है, चाहे वह पुरुष ”पति” द्वारा महिला ”पत्नी” के साथ किया जाए.” इसके अलावा, यह माना गया कि यह तर्क भी उचित नहीं है कि एक पति द्वारा किए जाने किसी भी कार्य को (जैसा कि एक आम आदमी द्वारा किया जाता है) विवाह संस्था द्वारा संरक्षित किया जाता है.
”…विवाह संस्था प्रदान नहीं करती है, प्रदान नहीं कर सकती है और मेरे विचार में, किसी विशेष पुरुष विशेषाधिकार या क्रूर जानवर को मुक्त करने के लिए लाइसेंस प्रदान करने वाली नहीं माना जाना चाहिए. यदि कोई कृत्य एक आदमी के लिए दंडनीय है, तो यह उस पुरुष के लिए भी दंडनीय होना चाहिए, जो पुरुष भले ही पति क्यों न हो.” न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में इस तरह के हमले/बलात्कार करने पर पति की दी जाने वाली छूट पूर्ण नहीं हो सकती है, क्योंकि कानून में कोई भी छूट इतनी पूर्ण नहीं हो सकती कि वह समाज के खिलाफ अपराध करने के लिए एक लाइसेंस बन जाए. इसलिए, यह स्थापित किया गया है कि पत्नी पर उसकी सहमति के विरुद्ध लैंगिक उत्पीड़न का एक क्रूर कार्य, भले ही पति द्वारा किया गया हो, उसे बलात्कार कहा जा सकता है.
फैसले में यह भी सुझाव दिया गया है कि विधायिका इस मुद्दे पर विचार करें क्योंकि पति द्वारा अपनी पत्नी पर इस तरह के लैंगिक हमले करने से पत्नी के मानसिक स्तर पर गंभीर प्रभाव पड़ता है.(मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों तरह के प्रभाव) ”हालांकि शादी के चारों कोनों का मतलब समाज नहीं होगा, यह विधायिका पर है कि वह इस मुद्दे पर और छूट में फेरबदल करने के बारे में विचार करे. यह न्यायालय यह घोषित नहीं कर रहा है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए या अपवाद को विधायिका द्वारा हटा दिया जाना चाहिए. यह विधायिका पर है कि वह उपरोक्त मुद्दे पर विचार करने के लिए सभी तरह की परिस्थितियों और प्रभावों का विश्लेषण करे. यह न्यायालय केवल पति के खिलाफ तय किए गए बलात्कार के आरोप पर विचार कर रही है,जो उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ लगाए हैं.
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