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हम इसे क्यों प्रयोग करते हैं?

नेश्‍नल पब्लिक रेडियो पर आजकल एक बहुत अच्छी शृंखला चल रही है – “दिस आइ बिलीव“। इस में श्रोता अपनी विचारधारा के ऊपर एक छोटा सा निबन्ध लिखते हैं, और चयनित निबन्धों को रेडियो पर प्रसारित किया जाता है। इस में सुने गए विचार कई बार मन को छू लेते हैं। हाल ही में सुना डिअरड्रे सुलिवन का विचार “आलवेज़ गो टू द फ्यूनरल”। आप भी पढ़ें और सुनें। डिअरड्रे (उर्फ डी) को उस के स्वर्गवासी पिता हमेशा समझाते थे कि “बेटी, किसी परिचित की अन्त्येष्टि हो तो भाग लेने में कभी मत हिचकिचाओ”। डी बताती हैं कि यह उसूल उन्होंने अपनाया, और इस का अर्थ केवल अन्येष्टियों में जाना ही नहीं था, बल्कि हर वह काम करना था, जिसे देखने में छोटा, अनावश्यक, अप्रिय समझ कर हम उसे करने में आनाकानी करते हैं पर अगले के लिए उसकी बहुत महत्ता होती है। इसी उसूल ने डी को अपने पिता की मृत्यु के साथ समझौता करना भी सिखाया।

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