नाबालिग की जमानत रद्द करने में भी उसका हित देखना जरूरी- इलाहाबाद हाईकोर्ट
तारीख: 07 मई, 2021
स्रोत (Source): अमर उजाला
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स्थान: उत्तर प्रदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि नाबालिग अपचारी को जमानत मिलना उसका अधिकार है. उसे जमानत देने से इंकार करते समय भी उसका हित ही देखना आवश्यक है. सामान्य स्थिति में जमानत देने से इंकार नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (किशोर न्याय अधिनियम) की धारा 12 में कोई संशोधन नहीं हुआ है. ऐसे में किसी नाबालिग को जमानत देने से इनकार करते समय उसका स्पष्ट कारण दर्शाना जरूरी है. यदि जमानत पर रिहा करने से नाबालिग के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक या शारीरिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है या उसके फिर से अपराधियों के संपर्क में आने की आशंका है तभी जमानत देने से इनकार किया जाना चाहिए.
कोर्ट ने प्रयागराज के कर्नलगंज थाने में दर्ज दुष्कर्म के एक मामले में नाबालिग अपचारी को जमानत देने से इंकार करने के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और विशेष जज पॉक्सो एक्ट के आदेशों को रद्द करते हुए अपचारी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. आरोपी अपचारी की निगरानी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने दिया. आरोपी के खिलाफ पीड़िता ने स्वयं कर्नलगंज थाने में दुष्कर्म, छेड़खानी, पॉक्सो एक्ट और एससी एसटी एक्ट की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कराया था. आरोप है कि 16 वर्षीय नाबालिग ने अपने चार पांच दोस्तों के साथ मिलकर उससे दुष्कर्म किया.
निगरानीकर्ता के वकील का कहना था कि जेजे बोर्ड और पॉक्सो कोर्ट ने गैरकानूनी तरीके से जमानत अर्जी खारिज की है. उन्होंने सिर्फ अपराध की गंभीरता के आधार पर जमानत खारिज कर दी. पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए बयान में दुष्कर्म की बात से इंकार किया है. जमानत निरस्त करने का कोई उचित कारण नहीं था. हाईकोर्ट ने जमानत मंजूर करते हुए कहा कि पीड़िता ने अपने बयान में दुष्कर्म के आरोपों से इनकार किया है. मेडिकल रिपोर्ट में कोई चोट भी नहीं मिली है. जमानत निरस्त करने की ठोस वजह नहीं थी.
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