पोकसो के तहत आरोपी किशोरों के लिए आयुसीमा घटाने पर आगे विचार नहीं करना चाहती संसदीय समिति
तारीख: 11 अगस्त, 2021
स्रोत (Source): नवभारत टाइम्स
तस्वीर स्रोत : नवभारत टाइम्स
स्थान : नई दिल्ली
संसद की एक प्रमुख समिति ने पोकसो कानून के तहत गंभीर मामलों में शामिल किशोरों के लिए उम्र सीमा 18 साल से कम करके 16 साल करने पर जोर नहीं देने का फैसला किया है. इससे पहले सरकार ने कहा कि इस आयु वर्ग के किशोरों द्वारा किये जाने वाले जघन्य अपराधों से निपटने के लिए मौजूदा कानून पर्याप्त हैं.
राज्यसभा सदस्य और कांग्रेस नेता आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की एक टिप्पणी पर सरकार की प्रतिक्रिया आई. समिति ने कहा था कि ‘लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण’ (पोकसो) कानून के तहत बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जहां किशोरों की आयु कानून लागू होने के लिहाज से तय आयु सीमा से कम रही है.
समिति ने कहा था, ‘‘समिति को लगता है कि नाबालिग लैंगिक अपराधियों को यदि सही परामर्श नहीं दिया गया तो वे और अधिक गंभीर और जघन्य अपराध कर सकते हैं. इसलिए इन प्रावधानों पर पुनर्विचार बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसे अपराधों में लिप्त किशोरों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसलिए समिति की सिफारिश है कि गृह मंत्रालय 18 साल की वर्तमान आयु सीमा की समीक्षा के विषय को महिला और बाल विकास मंत्रालय के साथ उठा सकता है और इस बारे में विचार किया जा सकता है कि क्या पोकसो कानून, 2012 को लागू करने के लिए आयु सीमा को कम करके 16 साल किया जा सकता है या नहीं.’’
जवाब में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने सूचित किया है कि बालकों के संरक्षण के लिए और अपराध के आरोपी किशोरों के लिए किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जेजे अधिनियम) है.
मंत्रालय ने कहा, ‘‘पोकसो कानून के तहत अपराध के आरोपी बालकों को जेजे अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत संरक्षण प्राप्त है. जेजे अधिनियम, 2015 आरोपी बालकों के मामलों पर फैसला लेने के लिए किशोर न्याय बोर्ड को अधिकार प्रदान करता है. बालकों के अपराधों को छोटे–मोटे, गंभीर और जघन्य अपराधों की श्रेणी में बांटा गया है.’’
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