पीड़िता की जांघों के बीच किया गया पेनेट्रेटिव सेक्सुअल एक्ट IPC की धारा 375(c) के तहत परिभाषित ‘बलात्कार’ के समान: केरल हाईकोर्ट
तारीख: 4 अगस्त, 2021
स्रोत (Source): लाइव लॉ
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स्थान : केरल
केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि जब पीड़ित के शरीर को ऐसी सनसनी पैदा करने के लिए छेड़ा जाता है, जो पेनेट्रेशन (पेनेट्रेशन ऑफ एन ऑरफिस यानि एक छिद्र में प्रवेश) जैसी हो तो बलात्कार का अपराध आकर्षित होगा. जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस जियाद रहमान एए की खंडपीठ ने कहा, “… हमारे मन में कोई संदेह नहीं है कि जब पीड़ित के पैरों को एक साथ जोड़कर, उसके शरीर में छेड़छाड़ की जाती है, ताकि ऐसी सनसनी पैदा हो, जो पेनेट्रेशन (पेनेट्रेशन ऑफ एन ऑरफिस यानि एक छिद्र में प्रवेश) जैसी हो तो बलात्कार का अपराध आकर्षित होता है. इस प्रकार एक साथ जोड़ी गई जांघों में पेनेट्रेशन किया जाता है तो यह निश्चित रूप से सेक्शन 375 के तहत परिभाषित “बलात्कार” के समान होगा.”
अदालत ने यह फैसला एक ऐसे मामले में दिया था, जिसमें एक नाबालिग के साथ उसके पड़ोसी ने बार–बार विभिन्न डिग्रियों का लैंगिक उत्पीड़न किया था. खंडपीठ दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अभियुक्त की अपील पर सुनवाई कर रही थी. उस पर POCSO एक्ट के सेक्शन 3(c) रीड/विद 5(m), सेक्शन 6, सेक्शन 9(l) (m) रीड/विद सेक्शन 10, सेक्शन 11 (i) और (iii) रीड/ विद सेक्शन 12 और IPC के सेक्शन 354, 354 A(1)(i) और (iii), 377, 375(c) रीड/विद सेक्शन 376(2) (i) के तहत दोष लगाए गए थे.
ट्रायल के बाद, उसे POCSO एक्ट के सेक्शन 11(i) रीड/विद 12, सेक्शन 9(l) (m) रीड/विद सेक्शन 10, सेक्शन 3(c) रीड/विद सेक्शन 5 (m) और सेक्शन 6, सेक्शन, IPC के सेक्शन 375(c) रीड/विद सेक्शन 376(2) (i), सेक्शन 377, सेक्शन 354, सेक्शन 354A(1) (i) के तहत दोषी पाया गया. निचली अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. तथ्य पेट दर्द की लगातार शिकायत के कारण नाबालिग पीड़िता अपनी मां के साथ एक चिकित्सा शिविर में गई थी, जिसके बाद यह घटना सामने आई. पीड़िता ने जांच में बताया कि छह महीने पहले उसके पड़ोसी ने कई मौकों पर उसका लैंगिक शोषण किया था.
इसके बाद पुलिस के समक्ष एक शिकायत दर्ज की गई और मामले की सुनवाई ट्रायल कोर्ट के समक्ष की गई. पेश की गई सामग्री का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने अभियुक्त को ऊपर दिए गए अपराधों का दोषी पाया. आरोपी ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की.
विचार के लिए बेंच के समक्ष कानून का शुरुआती प्रश्न यह था कि क्या संशोधित धारा 375 में निहित “बलात्कार” शब्द योनि, यूरेथ्रा, एनस और मुंह में पिनाइल पेनेट्रेश से परे लैंगिक हमले को शामिल करता है; मानवी शरीर में ज्ञात छिद्र, जहां तक ऐसे पेनेट्रेशन संभव हो सकें.
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, आरोपित लैंगिक कृत्य पीड़िता की जांघों के बीच आरोपी के लिंग को डालने का था. अदालत को इस सवाल का फैसला करना था कि क्या धारा 375 (C) के तहत “ऐसी महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में” किए गए पेनेट्रेशन, के दायरे में उसकी एक साथ जोड़ी गई जांघों के बीच किया गया पिनाइल सेक्सुअल एक्ट भी आता है; जबकि वह एक छिद्र कहलाने के योग्य नहीं है.
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