इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला, नाबालिग के अपराध की जानकारी मांगना निजता के अधिकार का हनन
तारीख: 07 मई, 2021
स्रोत (Source): जागरण
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स्थान: उत्तर प्रदेश
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सरकारी पद पर नियुक्ति के समय अभ्यर्थी से नाबालिग रहते हुए अपराध के खुलासे की मांग उसे संविधान के अनुच्छेद-21 में मिले निजता व गरिमा के मूल अधिकार का उल्लंघन है. किसी भी नियोजक को नाबालिग के अपराध का खुलासा करने की मांग का अधिकार नहीं है.
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि नाबालिग रहते हुए अपराध (जघन्य नहीं) में मिली सजा के आधार पर नियुक्ति से इनकार करने का भी अधिकार नहीं है. कोर्ट ने कहा कि चयनित अभ्यर्थी नाबालिग रहने के दौरान हुए अपराध पर चुप रह सकता है और उसे इसकी जानकारी देने से इनकार करने का पूरा अधिकार है. ऐसा करना तथ्य छिपाना अथवा झूठी घोषणा नहीं माना जाएगा.
यह फैसला न्यायमूर्ति अजय भनोट ने अनुज कुमार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. कोर्ट ने फैसले में याचिकाकर्ता (Petitioner) को पीएसी कांस्टेबल पद पर नियुक्त करने का निर्देश दिया है. साथ ही कमांडेंट 43 वीं बटालियन पीएसी एटा में नियुक्ति देने से इनकार करने के आदेश को मनमानापूर्ण करार देते हुए रद्द कर दिया है.
पूरे मामले के अनुसार याची 2018 पुलिस, पीएसी भर्ती में चयनित हुआ. एसपी एटा की रिपोर्ट पर नियुक्ति देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया गया कि उसे नकल के अपराध में लोक
अदालत से सजा मिली है. उसने जानकारी छिपाई है, इसे याचिका के जरिए चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड से अपराध में मिली सजा को नियुक्ति से इनकार करने का आधार नहीं बनाया जा सकता. यह सरकारी नियुक्ति के लिए अयोग्यता नहीं मानी जाएगी.
अदालत ने कहा है कि नाबालिग और बालिग दोनों अनुच्छेद-14 के तहत अलग वर्ग हैं. बालिग के अपराध की जानकारी नियुक्ति के समय मांगी जा सकती है. छिपाने पर नियुक्ति से इनकार किया जा सकता है, लेकिन यह बात नाबालिग के अपराध पर लागू नहीं होगी. हां, 16 से 18 वर्ष के नाबालिग यदि हत्या, दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के दोषी हों तो यह छूट उन्हें नहीं मिलेगी.
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