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एक कठिन पुनर्वासन

Arjun Singh

Arjun Singh

Project Coordinator

सीसीआई (चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन) में मई 2018 से रह रही प्रिया (बदला हुआ नाम) बाजारू लैंगिक शोषण की एक पीड़िता है. मई 2019 में बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) द्वारा जारी एक आदेश के बाद एक अन्य संस्था के पास से प्रिया का केस प्रेरणा को सौंपा गया. टीम द्वारा एक सामाजिक अन्वेषण (सोशल इन्वेस्टिगेशन) करने के बाद यह मालूम हुआ कि कुछ वर्षों पहले प्रिया की माँ का देहांत हो गया था और वह अपने पिता कलश (बदला हुआ नाम) व भाई पंकज (बदला हुआ नाम) के साथ रहती थी. माँ की गैर-मौजूदगी में प्रिया का परिवार घरेलू कार्य की देखभाल करने को लेकर प्रिया पर निर्भर था (परिवार ने प्रिया को उसकी माँ की जिम्मेदारियों को लेने वाले के रूप में देखा) और कलश ने लगातार बेटी को दूर रखने का दोष सिस्टम पर डाला. कलश अपनी बालिका की कस्टडी की अपील करते हुए अक्सर बाल कल्याण समिति की कचहरी में दिख जाता था. इस बीच, प्रिया भी खुद को अपने परिवार में पुनःस्थापित करने की विनती करने लगी.

प्रिया के लिए हस्तक्षेप की योजना बनाने के दौरान, टीम ने बालिका व उसके परिवार से नियमित फॉलो अप की गहराइयों में ध्यान केंद्रित करते हुए पुनःस्थापना की संभावना पर भी चर्चा की. प्रिया और कलश के साथ समुपदेशन सत्र (काउंसलिंग सेशन) शुरू किए गए, साथ ही साथ सामाजिक कार्यकर्ता, समुपदेशक (काउंसलर), बालिका व उसके परिवार के साथ सामूहिक सत्र का आयोजन किया गया. पिछली संस्था द्वारा जमा की गई रिपोर्ट्स में दर्ज जानकारी से यह स्पष्ट था कि बालिका को देह व्यापार में भेजने में परिवार का हाथ नहीं था. हालांकि भावनात्मक रूप से परिवार की निर्भरता बालिका पर होने का अनुभव किया गया. कलश अपनी बालिका से स्नेह करता था और उसकी फिक्र करता था लेकिन उसमें बालिका की जरूरतों को लेकर समझ की कमी थी. इसके साथ यह भी महसूस किया गया कि कलश की सोच उस समूह से मिलती है जिसका मानना होता है कि महिलाएं पुरुषों जितना काबिल नहीं होती हैं और उनकी भूमिका शादी करके महज घरेलू कामकाज संभालने की होती है. कलश ने केस वर्कर्स से बालिका को पुनः घर में स्थापित करने की गुजारिश की, क्योंकि वह बीमार था और खाना बनाने में व अपना ख्याल रखने में उसकी मदद चाहता था. प्रिया व कलश के साथ चार महीनों तक काम करने बाद व प्रिया से उन चुनौतियों, जो उसे लगा कि घर जाने पर उसको सामना करना पड़ेगा और उनसे निपटने के तरीकों पर चर्चा करने के बाद सितंबर 2019 में प्रिया को परिवार के साथ पुनः स्थापित करा दिया गया.

परिवार के साथ पुनः स्थापित किए जाने के बाद जब प्रिया की मुलाकात सोशल वर्कर से होती तो वह बताती कि घर की परिस्थितियों का सामना करने में उसे परेशानी होती है. वह अपनी क्षमता से अधिक कार्य करने की बात बताने के साथ-साथ वह ट्रेनिंग सेंटर और घरेलू कार्य एक साथ न कर पाने की बात का भी जिक्र करती है. ट्रेनिंग सेंटर में प्रिया शैक्षणिक व व्यावसायिक प्रशिक्षण ग्रहण करने जाती थी. प्रिया ने यह भी बताया कि अगर वह देर से आती थी या फोन पर अपने दोस्तों से बात करती थी तो अक्सर उसके घर पर झगड़े होते थे. कलश व पंकज से बातचीत के दौरान यह अनुभव किया गया कि वह प्रिया के प्रति अपना स्नेह व लगाव दिखाने के लिए फोन, वॉशिंग मशीन जैसी भौतिक वस्तुएं उसके लिए खरीद रहे थे. उन्हें लगा कि यह वस्तुएं परिवार से मिलने वाले स्नेह की भरपाई कर सकती हैं. महंगी वस्तुएं खरीदने से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रिया के साथ वक्त गुजारना व उससे पूछना कि उसका दिन कैसा रहा आदि हैं, उन्हें यह समझाने के लिए एक सत्र का आयोजन किया गया. परिवार से इसी प्रकार के स्नेह प्रिया चाह रही थी.

दिसंबर 2019 में प्रिया ने सीडब्ल्यूसी से गुजारिश की, जिसके बाद उसे फिर से संस्था में भर्ती कर दिया गया. प्रिया व उसके परिवार के साथ हस्तक्षेप जारी रहा. जहां परिवार बालिका की चिंता व उसका नजरिया नहीं समझ रहा था वहीं, प्रिया अपने परिवार के साथ रहने व संस्थान में रहने को लेकर अभी भी असमंजश (कन्फ्यूजन) में थी. कोविड़-19 के प्रकोप के कारण लगाए गए लॉकडाउन के शुरुआती दो महीनों के दौरान बालकों को उनके परिवार के साथ पुन: स्थापित करने पर प्रबंध था. प्रिया ने एक अनुरक्षण गृह (आफ्टरकेअर होम) में जाने की इच्छा जाहिर की, उसका मानना था कि वह वहां रहकर अपना शेफ (बावर्ची) बनने का सपना पूरा कर सकेगी. हालांकि उसे इस बात का पछतावा रहेगा कि वह पिता के बीमार होने के बावजूद परिवार के साथ नहीं रह सकेगी.

 

जून के एक रविवार की शाम को सोशल वर्कर को कलश की ओर से एक फोन कॉल आया, जिसमें उन्होंने कहा कि पंकज को ब्लड कैंसर है और उन्हें इस बात की जानकारी अभी हुई है. कलश ने मदद की मांग करते हुए इस बात पर जोर दिया की प्रिया को वापस परिवार में रखा जाना चाहिए. सोशल वर्कर ने कहा कि वह कलश का संपर्क उस संस्था से करा देगी जो इलाज व अन्य प्रकार की सहायता प्रदान करते हैं. लेकिन तत्काल प्रभाव से प्रिया को परिवार के पास रखा जाना संभव नहीं है.

इन दो दिनों के भीतर, पंकज की सेहत और बिगड़ गई और उसका देहांत हो गया. सोशल केसवर्कर ने यह सूचना प्रिया को दी. यह सूचना प्रिया को देना और उसके परिवार से बात करना बेहद कठिन था. प्रिया और उसका परिवार प्रणाली (सिस्टम) व केसवर्कर को प्रिया को परिवार से दूर रखने का दोष दे रहे थे. सीडब्ल्यूसी, होम स्टाफ व परिवार से तालमेल बिठाने के बाद प्रिया को घर भेजने के लिए प्रबंध किए गए. बालिका को घर में स्थापित करने के बाद टीम बालिका व परिवार के संपर्क में रही. साथ ही साथ परिवार को आर्थिक सहायता पहुंचाने वाले संगठनों के साथ जोड़ा गया और परिवार तक टीम द्वारा राशन पहुंचाया गया. प्रिया ने दो दिन बाद सोशल वर्कर को कॉल किया और एक नौकरी दिलवाने की मांग की, जिसके बाद उसे नौकरी में मदद करने वाली एक संस्था से संपर्क कराया गया.

सोशल वर्कर के लिए यह एक कठिन परिस्थिति थी. बालिका के सर्वोत्तम हित को दिमाग में रखते हुए व उसकी सहमति के बाद निर्णय लिए गए. कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन में बालकों व परिवार के पास जाकर काम करना कठिन हो रहा था और फोन से जारी बातचीत की प्रक्रिया के कारण बालिका के पुनर्वासन की प्रक्रिया में देरी हुई. इस केस ने सोशल वर्कर के मन में एक असहज विचार उत्पन्न कर दिया था कि लॉकडाउन के दौरान जब खराब होते हालातों के कारण सभी पुनर्वास की प्रक्रिया अटकी हुई थी, उस दौरान बालिका के पुनर्वासन को लेकर परिवार के एक सदस्य की मृत्यु हो गई. प्रणाली के लिए बालिका का सर्वोत्तम हित या पुनर्वासन प्राथमिकता नहीं रही है, लेकिन उस ओर देखा जरूर जाना चाहिए. कोरोना  महामारी के दौरान संरक्षण व देखभाल के जरूरतमंद बालकों के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं का निलंबन नहीं होना चाहिए. 

 

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