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“ऐसी एफआईआर लैंगिक उत्पीड़न के अपराध को हल्का बनाती है”: दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 354ए, 506 आईपीसी के तहत झूठे आरोप लगाने पर पीड़ा व्यक्त की

 
तारीख: 27 जनवरी, 2022

स्रोत (Source): लाइव लॉ

तस्वीर स्रोत : लाइव लॉ

स्थान : दिल्ली

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की है कि आईपीसी की धारा 354 ए और 506 का इस्तेमाल कैसे किसी के चरित्र पर अपनी नराजगी जाहिर करने के लिए किया गया है. कोर्ट ने कहा, ऐसा कृत्य केवल लैंगिक उत्पीड़न के अपराध को हल्का करता है. जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि उक्त प्रावधानों का गलत इस्तेमाल वास्तव में लैंगिक उत्पीड़न की शिकार हुई महिला की ओर से दायर आरोपों की सत्यता पर संदेह पैदा करता है. अदालत ने मामले में याचिकाकर्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के एक सहायक प्रोफेसर के खिलाफ धारा 354 ए (लैंगिक उत्पीड़न) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं.

दिसंबर 2016 में याचिकाकर्ता अपने परिवार के साथ गृहनगर गया था. इसी दरमियान उसके फ्लैट के लिए छत पर बनी सीमेंट की टंकी को एक महिला (प्रतिवादी संख्या 2) ने तोड़ दिया. लौटने के बाद, याचिकाकर्ता ने पाया कि फ्लैट में पानी नहीं है और जब उसने निर्माण की अवैधता पर आपत्ति जताई, तो प्रतिवादी और उसके परिजनों ने याचिकाकर्ता को आश्वासन दिया कि वे इसका निर्माण दोबारा करा देंगे. हालांकि, उन्होंने ऐसा नहीं किया और याचिकाकर्ता ने अपने पैसे से प्लास्टिक की टंकी स्थापित की.

चूंकि याचिकाकर्ता की पत्नी कई बीमारियों से पीड़ित थी, उसने कई अनुरोध किए और साथ ही अवैध निर्माण के संबंध में डीडीए को कई पत्र लिखे, मगर उन पर कार्रवाई नहीं की गई. इसके बाद कहा गया कि प्रतिवादी संख्या 2 और उसके बेटे ने याचिकाकर्ता की पत्नी और परिवार अन्य सदस्यों के सथ दुर्व्यवहार किया. उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी, जिसके बाद याचिकाकर्ता की पत्नी ने आपराधिक शिकायत दर्ज कराई. हालांकि, यह कहा गया था कि संज्ञेय अपराध के खुलासे के बावजूद कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी.

यह भी कहा गया था कि अक्टूबर 2020 में याचिकाकर्ता पर मोहन सिंह नाम के एक व्यक्ति ने हमला किया, जिसने कथित तौर पर प्रतिवादी नंबर 2 के साथ साजिश रची थी. जब याचिकाकर्ता की ओर से शिकायत की गई तो एफआईआर दर्ज नहीं की गई. इसके अलावा, याचिकाकर्ता की पत्नी की ओर से लिखित शिकायत प्रस्तुत करने के बाद पुलिस ने याचिकाकर्ता को बुलाया और उस पर और उसकी पत्नी पर मामले से समझौता करने के लिए दबाव डाला. उन्होंने जब ऐसा करने से इनकार किया तो कहा गया कि प्रतिवादी संख्या 2 ने पुलिस की मिलीभगत से एफआईआर दर्ज कराई.

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