कोविड-19 प्रेरित लॉकडाउन में गहराया बाल विवाह का संकट
apurva vurity
communications manager
मेरा नाम हसीना शेख़ है और मैं पिछले 4 साल से ‘प्रेरणा’ के ‘सन्मान प्रोजेक्ट’ में काम कर रही हूँ. मेरा प्रेरणा से नाता 2016 में इंटर्नशिप करते हुए जुड़ा, जब मैं एस. एन. डी. टी. यूनिवर्सिटी से एमएसडब्ल्यू (मास्टर ऑफ सोशल वर्क) कर रही थी. इन 4 साल के अनुभव में मैंने बहुत सारे केस देखें हैं और आज मैं आप सब को उनमें से ही एक केस के बारे में बताना चाहती हूँ. यह केस एक ऐसी बच्ची का है, जिसे हमने बाल विवाह से बचाया था.
सन्मान प्रोजेक्ट उन बच्चों के साथ काम करता है, जिनसे भीख मंगवाई जाती है. ये प्रोजेक्ट एडुको द्वारा समर्थित है, जो बाल अधिकार के क्षेत्र में दुनियाभर में काम करने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ है. एडुको भारत में 1989 से सक्रिय है और महाराष्ट्र के 8 जिलों में स्थानीय NGO के साथ मिलकर काम कर रहा है. ‘आउटरीच’ सन्मान की एक बहुत महत्वपूर्ण पहल है, जिसके माध्यम से हमारी टीम मुंबई और नवी मुंबई में इन बच्चों के साथ उनके विकास और सुरक्षा को लेकर कार्य करती है. हम, सन्मान टीम के सदस्य पिछले दो वर्षों से चेम्बूर के जय आंबे नगर कम्युनिटी में आउटरीच का काम कर रहे हैं, जहाँ हम हमारी आउटरीच पहल के माध्यम से बच्चों की विकासात्मक गतिविधियों को सुनिश्चित करते हैं. आउटरीच से हम इस कम्युनिटी के लगभग सारे बच्चों के साथ काम करते हैं. इस कम्युनिटी की ऐसी ही एक बच्ची है मालिनी, जिसके बारें में आज मैं आपको बताऊंगी.
कोविड-19 प्रेरित लॉकडाउन शुरू होने के कारण हमारे टीम मेंबर्स घर से काम कर रहे थे. इस दौरान हम आउटरीच पहल का पूरा काम फ़ोन के माध्यम से कर रहे थे और हम हमारे सभी बच्चों और उनके परिवार से संपर्क करके उनकी खुशहाली, उनकी ज़रूरतें और उनकी परेशानियाँ समझकर सुलझाने की कोशिश कर रहे थे. जून के महीने में अचानक एक दिन मेरे व्हाट्सएप पर मालिनी के नाम से एक सन्देश आया, जहाँ यह लिखा था “दीदी प्लीज कॉल करो अर्जेंट काम है”. सन्देश मिलते ही मैंने तुरंत उस नंबर पर फ़ोन लगाया, पर एक भी कॉल नहीं लगा. फ़ोन से संपर्क न होने के कारण दूसरे ही दिन मैं और मेरी एक टीम सदस्य ने चेम्बूर कम्युनिटी जाकर मालिनी से संपर्क करने की कोशिश की. कम्युनिटी जाते वक़्त लॉकडाउन की वजह से मुझे टैक्सी मिलने में काफी दिक्कत हुई. मेरे घर के पास से मुझे टैक्सी मिलने में कम से कम डेढ़ घंटा लगा और टैक्सी के अलावा उस वक़्त यात्रा करने का कोई साधन भी नहीं था. हमारी विजिट के दौरान बच्ची चेम्बूर कम्युनिटी में नहीं थी, पर कम्युनिटी के ही कुछ बच्चों ने हमें बताया कि बच्ची अभी विखरोली की एक इमारत में चल रहे निर्माण कार्य में काम करती है. जानकारी मिलते ही हम उस दिए हुए पते पर गए, पर वहाँ से हमें यह बोलकर गुमराह किया गया कि बच्ची वहाँ नहीं है. वो लोग सच नहीं बोल रहे है, ऐसा शक होने पर हम निर्माण स्थल के अंदर मालिनी को ढूंढने गए. अंदर पहुँचते ही हमें बच्ची की आवाज़ सुनाई दी. हमें देख कर बच्ची वहाँ से बाहर आयी और धीमी आवाज़ में बोली ‘दीदी मेरी मदद करो, वरना मेरे घरवाले मेरी शादी करवा देंगे’. बात करते वक़्त मालिनी की दादी वहां खड़ी थी, जिसकी वजह से हम उस वक़्त बच्ची से ज़्यादा बात नहीं कर पाए. थोड़ी देर दूसरी बातें करने के बाद बच्ची फिर से बोली “घरवाले अजीत नाम के 30 साल के ऊपर के एक आदमी से मेरी शादी करवा रहे हैं. वो आदमी दरअसल मेरी बड़ी बहन को शादी के लिए देखने आया था, लेकिन उसने पसंद मुझे किया”. दीदी, “मैं अभी बस 16 साल की हूँ और मैं शादी नहीं करना चाहती”.
मालिनी इस साल दसवीं कक्षा की परीक्षा दे चुकी है और वह आगे और पढ़ना चाहती है. उस दिन बच्ची से उसके बारें में सारी जानकारी लेकर हमने उसको शांत करने की कोशिश की और उसकी मदद करने का वादा किया.
हमारी टीम ने परिस्थिति की एहमियत को देखते हुए और जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की, जहाँ से हमें पता चला कि बच्ची की शादी अगले महीने की 2 तारीख (2 जुलाई) को होने वाली है. यह जानने के बाद, तुरंत हमने मुंबई उपनगर के जिला बाल संरक्षण विभाग (डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट) और बाल कल्याण समिति (चाइल्ड वेलफेयर कमिटी) को फ़ोन पर और ईमेल के माध्यम से सारी बातें बतायी.
इसके एक दिन बाद हम और डीसीपीयू के सदस्य, बच्ची के घर गए और बच्ची और उसके घर वालों से फिर से बात की. वहां बच्ची ने हमको बताया कि शादी के बाद दो दिन वह अपने ससुराल में रहेगी, जिसके बाद उसको माइके) भेज दिया जायेगा और 18 साल की होने तक वो माइके में ही रहेगी. बात करते-करते बच्ची ने हमको शादी के सारे सामान भी दिखाए और बोली “दीदी मुझे किसी भी हाल में ये शादी नहीं करनी”. हमने बच्ची से उसकी सुरक्षा को लेकर बात की और तभी बच्ची ने यह व्यक्त किया कि वो फिलहाल घर में नहीं रहना चाहती है, वह पढ़ना चाहती है. जब हमने उसे संस्था में रहने का एक पर्याय बताया, तो उसने कहा कि वह इस पर्याय के बारे में सोचना चाहेगी. बच्ची के घरवालों से बात करने पर हमें पता चला कि उसके माँ-बाप ऐसा इसलिए कर रहे थे, क्योंकि उनके समाज में ऐसा करने का रिवाज़ था. उन्होंने ये भी कहा कि वो मालिनी की शादी नहीं बस सगाई करा रहे थे. अगर वो मालिनी की सगाई नहीं कराते, तो शायद समाज में उनका निरादर किया जाता. हम सब समझ गए कि मालिनी के परिवार वाले ये सब सामाजिक दबाव में आकर कर रहे थे. लेकिन फिर भी बच्ची की बात को ध्यान में लेकर उस समय डीसीपीयू के सदस्य ने सीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष से बात की और विखरोली पुलिस की मदद से बच्ची को रेस्क्यू किया . बच्ची को ले जाते वक़्त उसके माँ-बाप को बताया गया कि बाल विवाह एक कानूनन अपराध है और समझाया गया कि अगर यह विवाह हुआ, तो सभी घरवालों पर कानूनन कार्रवाई हो सकती है. ये सारी बातों के बारे में पूरे समाज में भी जानकारी फ़ैल गयी और कहीं न कहीं सारे परिवार को समझ में आया कि बाल विवाह एक अपराध क्यों है और उससे बच्चों की मानसिक स्थिति पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है?
बच्ची को रेस्क्यू करने के बाद, सबसे पहले उसकी चिकित्सकीय जाँच की गयी, जिसके बाद उसको एक संस्था के बारें में जानकारी देकर वहां कुछ दिनों के लिए रखा गया. संस्था में जाने के बाद मालिनी खुश और तनाव मुक्त थी. हमारी टीम और डीसीपीयू, दोनों ही बच्ची से नियमित रूप से बात कर रहे थे, ताकि उसे कभी संस्था में अकेला महसूस न हो. बच्ची के संस्था में रहते वक़्त डीसीपीयू के सदस्यों ने निरंतर मालिनी के घरवालों से बात की और उन्हें बाल विवाह के दुष्परिणाम के बारे में समझाया. इसके बाद उसके घरवालों ने ये वादा किया कि वे बच्ची की शादी नहीं करवाएंगे और उसके पढ़ने की इच्छा में बाधा नहीं आने देंगे. सारी परिस्थिति को देखते हुए, मालिनी की इच्छा को समझते हुए और माँ–बाप के इसी वादे के साथ सीडब्ल्यूसी ने फैसला लिया कि मालिनी को उसके माता-पिता के पास 10 जुलाई को बहाल किया जायेगा. अभी हमारी टीम, सीडब्ल्यूसी और डीसीपीयू हर वक़्त सतर्क हैं. हम नियमित रूप से मालिनी का ‘फॉलो अप’ कर रहे हैं और यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि बच्ची के घर वाले अभी फिर से उसकी शादी कराने की कोशिश न करें. आगे बढ़ते हुए हम बच्ची और उसके परिवार वालों में ये जागरूकता पैदा करने की कोशिश करेंगे, ताकि उन्हें समझ में आए कि बाल विवाह से मालिनी को क्या तकलीफ हो सकती है? हम ये भी चाहते हैं कि मालिनी और उसके माँ-बाप सिर्फ प्रेरणा पर निर्भर न रहें. हम उन्हें और भी समर्थकों से जोड़ेंगे, ताकि उनको अगर ज़रूरत पड़े, तो वो उनसे भी मदद ले सकें.
मालिनी के केस को लेकर जब हम काम कर रहे थे, उसी समय हमें महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले से भी जानकारी मिली कि वहां पर भी इसी तरह बच्चियों के बाल विवाह को रोका गया. इसके अलावा हमारे देश के बाकी के राज्यों से भी इसी प्रकार की घटना की जानकारी आ रही थी. कमज़ोर वर्ग व संवेदनशील लोग COVID-19 प्रेरित लॉकडाउन की वजह से ज़्यादा संकट में हैं और उनकी मदद करने के लिए हमारी टीम भी लॉकडाउन की वजह से फील्ड पर नहीं जा पा रही है. इन दिक्कतों के बावजूद भी हम निरंतर मदद की कोशिश कर रहे हैं और इस तरह की कम्युनिटी में लोगों की मदद कर रहे हैं. हमारी टीम हमेशा सतर्क रहती है और कोशिश करती है कि वो हर बच्चे से फ़ोन पर ज़रूर बात करे.