ट्रेनिंग से सीखे काम करने के सबसे सही तरीके
Arjun Singh
Project Coordinator
बाजारू लैंगिक शोषण की पीड़िताओं व बाल लैंगिक शोषण के पीड़ितों का जीवन बेहतर करने के क्रम में प्रेरणा पिछले 30 वर्षों के अधिक समय से प्रयासरत है. इस दौरान जमीनी स्तर पर काम करते हुए प्रेरणा की टीम को कई तरह के अनुभव व सीख प्राप्त हुईं, जिन्हें किसी केस में ज़्यादा अच्छे परिणाम पाने के लिए धीरे-धीरे बेस्ट प्रैक्टिसेस यानी सबसे सही तरीकों के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा. प्रेरणा की टीम, इन सीख व अनुभवों को अपने तक न सीमित रखते हुए विभिन्न ट्रेंनिग के माध्यम से संबंधित क्षेत्र में काम करने वाली अन्य संस्थाओं व केस वर्कर्स के साथ लगातार साझा कर रही है. हाल ही में प्रेरणा की टीम ने नासिक, पुणे समेत कई अन्य जिलों में संबंधित क्षेत्र से जुड़कर काम करने वाले केस वर्कर्स के लिए इस ट्रेनिंग का आयोजन किया.
इन ट्रेंनिंग में भाग लेने वाले महेश, रेनुका, और रोहित ने ट्रेंनिग को लेकर अपना अनुभव साझा किया है. तीनों ही बाल लैंगिक शोषण के पीड़ितों की मदद करने की दिशा में एक सोशल केस वर्कर के तौर पर कई वर्षों से काम कर रहे हैं. ग्रैविटास फाउंडेशन (Gravitas Foundation) से जुड़े केसवर्कर्स, जिनके मुख्य कामों में, स्कूलों में जाकर बाल लैंगिक शोषण के प्रति जागरुकता फैलाना, स्कूल के साथ सेशन प्लान करना, काउंसलर को जानकारी देना आदि शामिल है. साथ ही, उन्होंने साझा किया कि वह इस ट्रेंनिग से पहले किसी केस को अपने हाथ में नहीं लेते थे. इसके अलावा, जिन केसों को उन्होंने चाइल्डलाइन के पास भेजा है वे उनका भी फीडबैक नहीं लेते थे, ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास संबंधित क्षेत्र की उपयुक्त जानकारी नहीं थी.
ट्रेंनिंग हासिल करने वाले मोहन का कहना है कि ट्रेनिंग प्राप्त करने के बाद, उन्हें यह जानकारी मिली कि वह कैसे किसी केस का फीडबैक ले सकते हैं और कैसे उसकी जानकारी संबंधित बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के साथ साझा कर सकते हैं. वहीं इस बात पर सहमति जताते हुए रोहित ने बताया कि ट्रेनिंग से बाद उन्हें यह जानकारी प्राप्त हुई कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (पोकसो) के तहत बताया गया है कि किसी केसवर्कर को अगर बाल लैंगिक शोषण के किसी केस की जानकारी है, तो उसे उसकी जानकारी पुलिस या संबंधित प्राधिकरण को देनी चाहिए. ऐसा न करने पर उस केस वर्कर पर भी कार्रवाई हो सकती है. बालकों के साथ काम करने वाले अधिकांश केसवर्कर्स को इन मूलभूत नियमों की जानकारी नहीं होती है.
तीनों ही केसवर्कर्स ने यह बताया कि प्रेरणा के सदस्यों ने पोकसो नियमों, सीडब्ल्यूसी, एसएससीडब्ल्यू, और बाल लैंगिक शोषण विषय पर जो ट्रेंनिग ली है, उसके बाद तीनों का आत्मबल बढ़ा है और वह अपने क्षेत्र के काम को बेहतर तरीके से समझ पा रहे हैं.
बेहतर एसआईआर
सामाजिक अन्वेषण रिपोर्ट (एसआईआर) के बारे में जानकारी रखना और उसे अच्छी तरह तैयार करना, फील्ड में काम करने वाले सभी सोशल वर्कर्स के लिए उतना ही जरूरी है, जितना किसी मकान के लिए नींव रखना. एसआईआर के बारे में रोहित ने बताया कि ट्रेनिंग के बाद उनमें एसआईआर को लेकर गंभीरता और भी बढ़ी है. हालांकि रोहित को बाल लैंगिक शोषण के किसी मामले में एसआईआर तैयार करने का मौका ट्रेनिंग के बाद से नहीं मिला है, लेकिन उन्होंने बताया कि कोविड-19 के कारण अपने माता-पिता को खो चुके बालकों को राहत प्रदान करने के लिए सरकार उनकी जानकारी जुटा रही है, इस जानकारी जुटाने के कार्य में उन्हें एसआईआर बनाने का मौका मिला. ट्रेनिंग से पहले तैयार किए गए एसआईआर और ट्रेनिंग के बाद तैयार किए गए एसआईआर में रोहित अंतर महसूस कर पा रहे थे.
रोहित की बात का समर्थन करते हुए मोहन ने बताया कि ट्रेनिंग के बाद वे एसआईआर में अंतर के साथ-साथ बालकों और उनके परिवारों से बात करने के तरीके में अंतर महसूस कर पा रहे थे. उन्होंने साझा किया कि ट्रेनिंग में हमें पता चला कि पीड़ित परिवारों से सहानुभूति दिखाते हुए बात करने और उन्हें सच बताते हुए कोई झूठा वादा न करने से परिवार का भरोसा जीतने में मदद मिलती है. एकबार जब परिवार आप पर भरोसा करने लगता है, तो वह अपने बारे में खुलकर जानकारी साझा करता है, जिससे किसी भी केस को समझने और उसके मुद्दों को पहचानने में बेहद आसानी होती है. रेणुका ने बताया कि उन्होंने पहली बार इस तरह की किसी ट्रेनिंग में भाग लिया था और उन्हें पहली बार एसआईआर के बारे में जानकारी मिली थी. इसके बाद उन्होंने भी कोविड-19 में माता-पिता को खोने वाले बालकों की जानकारी जुटाने और उनकी एसआईआर तैयार करने का कार्य किया.
सवालों पूछने का लहजा सुधरा
रेणुका ने आगे बताया कि ट्रेनिंग से पहले भी उन्होंने फील्ड विजिट (पीड़ित के घर जाना या उससे मिलना) की थी लेकिन हमेशा उनके दिमाग में एक शंका बनी रहती थी कि उनके सवालों से पीड़ित और भी परेशान न हो जाए. वहीं ट्रेनिंग के बाद, यह समझ में आया कि उन्हें पीड़ित व परिवार के हालातों को ध्यान में रखकर संवेदनशील स्थिति में कैसे सवाल करने चाहिए, जिससे पीड़ित को दुख न पहुंचे और वह केस वर्कर पर भरोसा कर सके. तीनों ही केस वर्कर्स ने बताया कि हमें परिवार से बात करने और उनसे सवाल पूछने के दौरान इस अंतर को साफ करना बेहद आवश्यक था कि हम पुलिस नहीं है. कई बार ऐसा होता है कि परिवार पुलिस का नाम या पुलिस के लिहाज़ में सवाल किए जाने से डर जाता है, जिससे वह हम पर भरोसा न करते हुए सही जानकारी नहीं देते हैं. सवाल पूछने के लहजे से यह अंतर हटाने और सवालों के उद्देश्य को ट्रेनिंग के जरिए प्रेरणा की टीम ने समझाया.
नई परिस्थितियों के लिए तैयार करती है ट्रेनिंग
रेणुका ने यह भी बताया कि प्रेरणा की यह ट्रेनिंग आपको कई ऐसी परिस्थितियों के लिए भी तैयार करती है जो कई बार अनजाने में सामने आ जाती है. रेणुका ने अपनी एक फील्ड विजिट का उदाहरण साझा करते हुआ बताया कि उन्हें एक परिवार में पिता की मृत्यु की सूचना मिली थी. लेकिन जब वह परिवार में पहुंचे तो उन्हें यह मालूम हुआ कि बालकों के पिता के साथ उनकी माता की भी मृत्यु हो चुकी है और वे बालक बहुत छोटे हैं. रेणुका ने कहा, इतने संवेदनशील महौल में किसी भी व्यक्ति का अपनी भावनाओं पर काबू करना मुश्किल होता है, लेकिन मुझे अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए परिवार से शांत मन व बिना उनकी भावनाओं को आहात करते हुए सवाल करने का आत्मविश्वास प्रेरणा की ट्रेनिंग से ही मिला है. बालकों की उम्र कम होने के कारण उनको यह जानकारी नहीं थी कि उनके माता-पिता गुज़र गए हैं, ऐसे में उनसे बात करना अपने-आप में ही एक जिम्मेदारी वाला काम है, जिसे समझने में यह ट्रेनिंग पूरी तरह से मदद करती है. इसके साथ ही, हमें पहले से पता था कि एसआईआर विजिट के दौरान दस्तावेज जुटाने होते हैं, लेकिन कौन से दस्तावेज महत्वपूर्ण हैं जैसे कि परिवार की पहले की फोटो, परिवार की आज की फोटो, जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र आदि, इसकी जानकारी हमें ट्रेनिंग में मिली.
आत्मविश्वास बढ़ा, अब और जिम्मेदारी लेंगे
तीनों ही केस वर्कर्स ने बताया कि उनकी संस्था सिर्फ बाल लैंगिक शोषण के प्रति जागरुगता फैलाने का काम करती है. ट्रेनिंग प्राप्त करने के बाद केस वर्कर्स ने अपने-आप काम यानि एसआईआर रिपोर्ट को तैयार करने, परिवार से बात करने और पोकसो के नियमों को समझने में जो सुधार महसूस किया है. उसके बाद केस वर्कर्स का मानना है कि वह अब जागरुकता फैलाने के साथ-साथ केस लेने के लिए और किसी बालक को न्याय दिलाने के लिए सीडब्ल्यूसी के सामने प्रस्तुत होने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. इस संदर्भ में उन्होंने ने अपनी संस्था में बात भी की है और भविष्य में वह बाल लैंगिक शोषण से पीड़ित बालकों के केस लेंगे.