माता-पिता के लिए बालकों के साथ संवेदनशील संवाद करने की गाइड
Arjun Singh
Project Coordinator
बालकों के साथ संवेदनशील संवाद करने के महत्व को समझाने व उसका अभ्यास कैसे किया जा सकता है यह बताने के लिए हमने माताओं के साथ कई सत्रों का आयोजन किया. हमारी काउंसलर श्रुति चैटर्जी के साथ एक ऐसे ही सत्र में श्रुति ने साझा किया कि कैसे हम विभिन्न परिस्थितियों में बालक के साथ प्रभावी रूप से बात कर सकते हैं और बालक को सहज महसूस करा सकते हैं.
प्रतिक्रिया देने के बजाय बातचीत का इस्तेमाल करें
अक्सर माता-पिता बालकों के बर्ताव को लेकर प्रतिक्रिया देते हैं. उदारण के लिए जब एक बालक किसी लड़ाई या बहस में शामिल होता है तो माता-पिता उसे ऐसा दोबारा न करने को लेकर समझाते है और हिंसा को गलत बताते हुए उसे सही करने का प्रयास करते हैं. इस तरह की प्रतिक्रिया बालक को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं देती है. अगर बालक को किसी के द्वारा परेशान किया जा रहा हो और उसे किसी व्यस्क की सहायता की आवश्यकता है तो वह असहाय, अनसुना व अकेला महसूस करते हैं. इस परिस्थिति में उचित प्रक्रिया बिना किसी निष्कर्ष के बालक के साथ बातचीत करना व उसकी बात को सुनना होगी. ‘क्या तुम यह बताना पसंद करोगे कि वहां पर क्या हुआ था?’ या मुझे पता है तुम गुस्से में हो मुझे यह जानना है कि किन कारणों से तुम ऐसा महसूस कर रहे हो?’ इस प्रकार के वाक्यों का प्रयोग करें. बातचीत करने से पहले बालक को माता-पिता द्वारा कुछ वक्त दिया जाना चाहिए, यह बालक की मदद करेगा. घटना के आधार पर बातचीत करने की जरूरत का अनुमान लगाना बेहद महत्वपूर्ण है. और यह करने की आवश्यकता नहीं है कि बालक को पीटना माता-पिता द्वारा किया जाने वाला अस्वीकार्य बर्ताव है.
बातचीत में रुचि दिखाएं:
एक भरोसेमंद व सुरक्षित महौल में बालकों को बातचीत करने में हिचकिचाहट महसूस नहीं होती है, विशेषकर माता-पिता के साथ बात करने में. बगैर किसी शर्त के बालक को स्वीकारना बालक के प्रति प्यार व स्नेह जताने का तरीका होना चाहिए. ‘मैं चाहता हूँ कि तुम मेहनत करके पढ़ो, मैं मेहनत नहीं कर पाया था’, ‘तुम्हें एक सफल व्यक्ति बनकर हमारे परिवार के लिए एक घर खरीदना है’, ‘मेरे बुढ़ापे में तुम मेरा ख्याल रखोगे’ इस तरह के वाक्य बोलकर माता-पिता अक्सर अपने अधूरे सपने व आकांक्षाएं बालकों पर लादने का प्रयास करते हैं. इस तरह की आकांक्षाएं बालक पर बहुत ही कम उम्र में भारी दबाव बनाने लगती हैं. इस तरह की परिस्थितियों में बालक जब किसी छोटे लक्ष्य को पाने में असफल होता है तो वह खुद को अयोग्य समझने लगता है और उसके अंदर यह भावना पनपने लगती है. बालक की रोजाना की गतिविधियों में शामिल होकर माता-पिता बालक की क्षमताओं व गुणों की पहचान कर सकते हैं.
बुरे शब्द कहना, गलत नामों से पुकारना व लेबल न करने का प्रयास करें
नाम चिढ़ाना, लेबल करने से बालक के मन में माता-पिता या प्राधिकारी शख्स के खिलाफ नफ़रत की भावना विकसित होने लगती है. अक्सर माता-पिता गुस्से में बालक के लिए अरिपक्व, बुरा, बिना सामर्थ्य का और किसी काम का नहीं जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. यह शब्द बालक को विकसित होने में मदद नहीं करते हैं और उन्हें महसूस कराते हैं कि वह इसी लायक हैं. अगर लंबी अवधि में देखा जाए तो इस तरह का बर्ताव बालक के आत्मसम्मान व स्वयं को स्वीकारने की क्षमता पर असर डालता है. इस कारण से माता-पिता के लिए यह बेहद आवश्यक हो जाता है कि वह स्वयं से सवाल करें कि वह जो बालक के लिए बोल रहे हैं वह सत्य है और क्या यह मेरे बालक पर प्रभाव डालेगा.
‘मुझे लगता है’ का उपयोग बातचीत में करें
किसी भी परिस्थिति में अपनी भावनाओं को व्यक्त करते समय अपने बालक पर सीधा निशाना साधने के स्थान पर ‘मुझे लगता है’ का इस्तेमाल करें. उदारहण के लिए, ‘तुम बदत्तमीज हो’ कहने के साथ यह कहने का प्रयास करें कि ‘मुझे तुम्हारी बातों से बुरा महसूस हुआ है’, ‘तुम आलसी हो’ कहने के स्थान पर कहें कि ‘मुझे अच्छा लगेगा अगर तुम काम मेरी मदद करोगे’, ‘तुम मेरी बात कभी नहीं सुनते हो’ कहने के स्थान पर कहें कि ‘ मैंने जो कहा अगर उसपर तुम विचार करोगे तो मुझे अच्छा महसूस होगा’.
अपनी गलती पर माफी मांगे
सांस्कृतिक रूप से हमारी परवरिश इस आधार पर हुई है कि हम सोचते हैं कि हमारी उम्र से अधिक उम्र वाले लोग हमेशा सही होते हैं और अगर वह कभी गलती हैं तो बिना उनके माफी मांगे ही हमें यह समझ जाना चाहिए कि उन्होंने माफी मांग ली है. यह धारणा बिल्कुल गलत है और इसमें सुधार की आवश्यकता है. माता-पिता को खुलकर अपनी गलतियों को मानना चाहिए और दर्द पहुंचाने के लिए माफी मांगनी चाहिए.
बालक से इज़ाज़त लें-
अपनी पसंद व नपसंद के साथ बालक एक अलग मनुष्य है. इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि जिन परिस्थियों में बालक को शामिल किया जा रहा है उससे पहले बालक की मंजूरी ली जाए. अक्सर माता-पिता अपने बालकों से मेहमानों के सामने गाने या डांस करने की बात कहते हैं ‘बेटा आंटी को जरा डांस करके दिखाओ’, ‘स्कूल में जो कविता सीखी है उसे सुना दो’, ‘अपनी नानी को एक किस दो’. इस तरफ की परिस्थितियों में अक्सर माता-पिता अपने बालक की मर्जी के बारे या बालक क्या चाहता है इस बारे में नहीं सोचते हैं. इसके स्थान पर बालक से पूछने की आदत विकसित करें. जैसे- ‘क्या तुम अपना परिचय देना पसंद करोगे’, ‘नानी को गुडबाय किस अच्छी लगेगी, अगर तुम नहीं करना चाहते हो तो मना कर सकते हो यह बिल्कुल सामान्य है’.
क्या न करें की जगह बताएं कि क्या करें
अक्सर माता-पिता अपने बालकों के बर्ताव को बदलने के लिए नकारात्मक वाक्यों का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें ‘मत करो’ भी शामिल होता है. हालांकि बालकों की ‘मत करो’ का मतलब समझ में आता है लेकिन उनके दिमाग में क्या करें इसको लेकर असमंजस उत्पन्न हो जाता है. माता-पिता अपने बालकों को नकारात्मक के स्थान पर सकारात्मक वाक्य कहकर उन्हें बता सकते हैं कि बालक क्या करे. उदाहरण के लिए- ‘अपने भाई से मत लड़ो’ कहने के स्थान पर कहे कि ‘अपने भाई के साथ प्रेम से रहो’, ‘बाहर मत जाओ, तुम्हे पढ़ना है’ कहने के स्थान पर कहें कि ‘अपनी पढ़ाई खत्म करने के लिए कृपया घर पर ही रहो’, ‘जिद मत करो’ के स्थान पर कहें कि ‘मेरी बात सुनो’.
बालक की सराहना करें
बालक के साथ प्यार भरे शब्दों का इस्तेमाल करने से बालक को भागीदारी, सम्मान का एहसास होता है, साथ ही उसका आत्मविश्वास भी बढ़ता है. अपने बालक की हर छोटी-छोटी उपलब्धियों पर उसकी सराहना करें. यह सुनिश्चित करें कि आप महज ‘अच्छा प्रदर्शन’ नहीं कह रहे हों, बल्कि बालक को बताएं कि उसके प्रदर्शन में कौन सी विशेष चीज बेहतर थी. उदाहरण के लिए, जब बालक किसी की मदद करता है तो आप कह सकते हैं कि ‘मैं देख सकता हूँ कि तुम उस व्यक्ति की समस्या समझते हो और तुमने उसकी मदद करने का फैसला लिया.’ या जब बालक बिना आपके टोके ही अपना होमवर्क पूरा कर लेता है तो आप कह सकते हैं कि ‘मैं देखा कि तुमने अपने होमवर्क को महत्व दिया और उसे करने के लिए वक्त निकाला.’