शादी में सीमित मेहमानों को बुलाने के फैसले को गरीब तबके ने एक अवसर समझा, लॉकडाउन में तेजी से बढ़े बाल-विवाह के मामले
Arjun Singh
Project Coordinator
बाल विवाह की प्रथा हमारे समाज में सदियों से चली आ रही है, जहां माता–पिता अपने 18 वर्ष से छोटे बालक या बालिका की शादी करा देते हैं. कोरोना काल के दौरान प्रेरणा को कई बाल विवाह के मामलों की जानकारी मिली. कोरोना प्रेरित लॉकडाउन के दौरान देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या के साथ ही बाल विवाह के मामलों की संख्या में भी तेजी दर्ज की गई है. चाइल्ड लाइन इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2020 के मार्च से लेकर जून तक देश में 5,214 बाल विवाह हुए हैं. मार्च से जून के दौरान लॉकडाउन का प्रभाव अपने शीर्ष पर था, उस दौरान इतनी बड़ी संख्या में बाल विवाह का होना अपने आप में एक चिंताजनक बात है. महिला व बाल विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार, मध्य मार्च से जुलाई तक सिर्फ मैसूर में बाल विवाह के 100 मामले सामने आए हैं. अंग्रेजी के प्रतिष्ठित अखबार ‘द हिंदू’ की वेबसाइट पर मौजूद एक लेख की माने तो यह आंकड़े पिछले वर्ष की तुलना में लगभग दोगुने हुए हैं. बाल विवाह के इस तरह के मामलों में 18 वर्ष से कम खासकर 14 से 17 वर्ष की आयु की लड़कियों की शादियां कराई गई हैं, जो शारीरिक व मानसिक रूप से शादी करने के लिए तैयार नहीं थीं. इसके साथ ही इस उम्र के बालक व बालिकाओं की शादी करना एक कानूनन अपराध है, जिसके लिए माता–पिता या परिवार पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है. पुराने समय में लोग लड़कियों को कम आंकते थे व महज रसोई और घर गृहस्थी संभालने को उनकी सीमा मानते थे. समाज में महिलाओं पर हो रहे इस अन्याय को देखते हुए सरकार द्वारा बालिका की शादी की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई है. लेकिन समाज में आज भी कई वर्ग ऐसे हैं, जो बालिका के स्वास्थ्य, मर्जी, व उसकी मानसिक स्थिति से ज्यादा तवज्जो परंपरा को देते हैं. फर्ज कीजिए अगर मिताली राज के माता–पिता ने उनका बाल विवाह करा दिया होता तो उनके लिए भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान बनना लगभग असंभव होता. वहीं अगर जोया अग्रवाल के माता–पिता ने उनका बाल विवाह कर दिया होता तो वह बंगलुरु से सैन फ्रांसिस्को की उड़ान भरने वाली महिला टीम की कमान कैसे संभालती? आज के दौर में किसी भी बालिका या बालक का बाल विवाह कराना उसे भविष्य के अवसरों से वंचित रखने के समान है.
लॉकडाउन में बढ़ रहे बाल विवाह के मामलों के संदर्भ में हमने ‘वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर’ में व एक स्पेशलाइज्ड सोशल केस वर्कर के रूप में काम करने वाले महेश यथेकर से बात की. महेश ने बताया कि कोरोना प्रेरित लॉकडाउन के दौरान जहां सरकार का ध्यान कोरोना के मामलों पर नियंत्रण करना व उससे निपटने पर था, वहीं समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके ने इस महामारी के काल को एक मौका समझा. समाज के इस तबके से आने वाले कई पिताओं ने महामारी के दौर को सुनहरा अवसर समझकर अपनी नाबालिग बेटियों की शादी करा दी. उन्होंने आगे बताया कि महाराष्ट्र में बाल विवाह के अधिकतर मामले अहमद नगर, बीड व उसके आस–पास बसे गांवों में देखे गए हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का अभाव, जागरूकता का अभाव व गरीबी जैसे कई कारक एक साथ काम करते हैं. ग्रामीण व उसके आसपास के इलाकों में लोगों की मानसिकता अभी भी ‘बेटी की शादी मतलब हर हाल में 4-5 लाख रुपए का खर्च’ वाली है. महेश के अनुसार कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं जहां शादी करने के लिए लड़के पक्ष ने लड़की पक्ष को भारी कीमत अदा की है, साथ ही शादी का पूरा खर्च भी उठाया है. उनका कहना था कि दिहाड़ी के आधार पर जीवन बिताने वाले एक पिता को अगर कोई शख्स बिना किसी दहेज की मांग किए बेटी की शादी अपने बेटे से करने का प्रस्ताव देता है. साथ ही शादी का पूरा खर्च उठाने व लड़की के परिवार को शादी के बदले कुछ अतिरिक्त पैसे देने का वादा करता है, तो आर्थिक रूप से कमजोर किसी भी पिता के लिए इस प्रस्ताव को न कर पाना बेहद मुश्किल हो जाता है. लॉकडाउन के दौरान कई परिवारों के मुखियाओं के लिए रोज का खाना जुटाना भी एक मुश्किल कार्य था.
लड़के वालों द्वारा बिना दहेज व शादी के लिए लड़की वालों को पैसे देने की बात विचित्र लगने के कारण हमारे द्वारा मानवी वाहतूक व वेश्यावसाय के लिए लड़कियों को खरीदने को लेकर सवाल किया गया. इस सवाल का जवाब देते हुए महेश ने इस तरह की किसी संभावना से इनकार कर दिया. उनका कहना था कि इस तरह के मामलों में लड़के पक्ष वाले शादी के बाद लड़की को ससुराल ले जाते हैं या लड़के के साथ भेज देते हैं.
हालांकि प्रेरणा के पास मौजूद अनुभव के अनुसार, लड़के वालों द्वारा कुछ चुनिंदा मामलों में ही लड़की पक्ष को पैसे देने की पेशकश की जाती है. इनमें से सबसे पहला मामला है, जब वह किसी लड़की को वेश्यावसाय में धकेलना चाहते हैं. इस तरह के कई मामले महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश की सीमा पर देखे गए हैं, जहां लड़का एक बड़ा व्यवसायी होने का नाटक कर लड़की के पिता के सामने उसकी बेटी से शादी करने का प्रस्ताव पेश करता है. साथ ही कहता है कि उसे शादी के लिए कोई दहेज नहीं चाहिए बल्कि वह इस शादी के लिए लड़की पक्ष को पैसे देगा. शादी के बाद लड़का उस लड़की को किसी बहाने से एक नए शहर लाकर बेच देता है. नए शहर में लड़के के कई दिनों तक गायब रहने पर लड़की को पता चलता है कि उसका सौदा कर दिया गया है. दूसरे मामला हरियाणा का है, जहां लिंग अनुपात कम होने के कारण कई लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल पाती हैं. ऐसे मामलों में लड़के का परिवार अपने या अन्य राज्य में लड़की पक्ष को पैसे देकर अपने बेटे की शादी करा देते हैं. कई मामलों में तो यह भी देखा गया है कि एक ही परिवार के 3-4 भाइयों की शादी एक ही लड़की से कराई गई है. इन लड़कियों व इनके बच्चों को किसी भी प्रकार का कानूनी हक नहीं दिया जाता है. वहीं तीसरा मामला महाराष्ट्र के कुछ आदिवासी इलाकों से जुड़ा है, जहां लड़की मजदूरी के कार्य से जुड़ी होती है व वह परिवार की आय का मुख्य स्रोत होती है. ऐसे मामलों में लड़का पक्ष लड़की के परिवार को इसलिए धनराशि की पेशकश करता है क्योंकि शादी के बाद लड़के वालों के पक्ष में आय का एक जरिया और बढ़ जाएगा.
वहीं लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह के मामलों में बढ़ोतरी का कारण भी लोगों की आर्थिक तंगी से ही जुड़ा हुआ है. भारत में शाही अंदाज से शादी करने का खुमार इतना है कि गरीब से गरीब शख्स समाज द्वारा तय किए गए पैमाने पर खरा उतरने के लिए अपने घर की शादी में अपनी हैसियत से चार गुना खर्च करने को तैयार हो जाता है. इस दिखावे के लिए भले उस शख्स को कर्ज लेना पड़े. लॉकडाउन के कारण लोगों के रोजगार व आर्थिक स्थिति पर अनिश्चित काल के लिए संकट खड़ा हो गया था. ऐसे में लोग अपना भार जल्द से जल्द हल्का करना चाहते थे, और हमारे समाज में बेटियों को भार मानने की मान्यता तो वर्षों से है. सरकार द्वारा लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान शादियों में ज्यादा लोगों के जुटने की पाबंदी लगाने को आर्थिक तंगी झेल रहे तबके ने कम खर्च में बेटी का विवाह निपटाने की एक आशा के रूप में देखा. अधिकांश लोगों का यह मानना था कि इस दौरान शादी करने पर ज्यादा मेहमानों को बुलाना नहीं पड़ेगा, जिससे खातिरदारी, भोजन, उपहार, सजावट, बैंड–बाजे जैसे कई खर्च कम हो जाएंगे. वहीं लड़के पक्ष वालों को कम बारातियों को ले जाने व उपहार न देने जैसी चीजों में खर्च कम करने का अवसर दिखा, जो लॉकडाउन में बाल–विवाहों के बढ़ने का प्रमुख कारण हैं.
लॉकडाउन में हुए बाल विवाह के संबंध में किसी विशेष समुदाय द्वारा इस तरह की गतिविधियां करने के सवाल पर महेश ने बताया कि कोई ऐसा विशेष समुदाय नहीं है, लेकिन बीड इलाके में गन्ने के खेतों में दिहाड़ी के आधार पर काम करने वाले लोगों में इस तरह के मामले ज्यादा देखे जाते है. यह मजदूर अपने गांव से दूसरे गांव काम करने के लिए जाते हैं और रिश्ते की पेशकश होने पर अपनी बेटी की शादी करा देते हैं. जहां इस तरह के लोगों में शिक्षा व जागरूकता का अभाव दिखता है, वहीं ये लोग अपने संस्कार, परंपरा और आदर्श को लेकर काफी सख्त होते हैं. ये अपनी बेटी की शादी अपनी ही बिरादरी में ही कराते हैं, किसी अन्य धर्म या जाति में नहीं. अगर कोई दूसरी बिरादरी का शख्स इन्हे शादी का प्रस्ताव भी देता है, तो ये लोग तुरंत मना कर देते हैं.
हालांकि प्रेरणा का अनुभव इस मामले में थोड़ा अलग है, पश्चिमी महाराष्ट्र, जिसे शुगर बेल्ट भी कहते हैं, में गन्ने की कटाई के सत्र में बीड इलाके से भारी संख्या में मजदूर परिवार संबंधित जिलों में मजदूरी के लिए आते हैं. कटाई सत्र में मजदूरी करने के दौरान इन परिवारों के पास रहने के लिए मकान समेत अन्य बुनियादी सुविधाओं का अभाव रहता है. ऐसी परिस्थितियों में इन परिवारों में बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंता रहती है, जिससे निजात पाने के लिए ये लोग बेटियों की शादी जल्द से जल्द करा देते हैं, ताकि अगर इस दौरान बालिका के साथ कोई अप्रिय घटना घटित हो जाती है, तो परिवार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ सके. साथ ही साथ इस तरह की गतिविधियों में उत्तर व मध्य भारत में बेडिया, बांझडा, नाट, बेड़िया, राजनाट आदि जैसे कई अन्य समुदाय है, जो कई वर्षों से इस तरह की गतिविधियों में शामिल है. इनमें से कई समुदाय परंपरा व पैसों के नाम पर अपनी बेटियों को देह व्यापार में भी ढकेल देते हैं.
सरकार व प्रशासन द्वारा जागरूकता फैलाने के बाद भी बाल विवाह के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आने वाली लड़कियों को शारीरिक व मानसिक रूप से परेशानी हो रही है. ऐसे मामलों में पुलिस कार्रवाई को लेकर महेश ने बताया कि शादी के बाद अगर पुलिस परिवार से शादी के संदर्भ में पूछताछ करती है, तो घर वाले सीधा बहाना बना देते हैं कि बेटी किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई है. वहीं, लड़की से पूछताछ करने पर वह परिवार के सदस्यों को बचाने के लिए झूठ बोल देती है. उनका कहना था कि कई मामलों में जब लड़की से 2-3 बार पूछताछ होती है, तब वह सच बताती है कि शादी जबरदस्ती कराई गई है. लेकिन अधिकांश मामलों में कार्रवाई नहीं हो पाती है.
लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह से संबंधित जो मामले प्रेरणा के समक्ष आए हैं, उनमें से अधिकांश मामलों में बालिकाओं ने खुद ही मदद के लिए प्रेरणा से संपर्क साधा था. ऐसे मामलों की सूचना मिलने के बाद तत्पर्ता दिखाते हुए प्रेरणा के सामाजिक कार्यकर्ताओं की टीम मौके पर पहुंची और संबंधित बालिकाओं को जरूरी मदद मुहैया कराई. इससे एक बात तो स्पष्ट हो रही है कि बालिकाओं के बीच बाल विवाह को लेकर जागरूकता फैल रही है और वह स्वयं के हित व अहित को लेकर आवाज उठा रही हैं. साथ ही साथ प्रेरणा तक मदद के लिए पहुंचने वाली अधिकतर बालिकाओं ने आगे पढ़ने की इच्छा भी जाहिर की है. यानी कि आज के समय में बालिकाएं पढ़ना चाह रही हैं लेकिन परिवार वाले सामाजिक, आर्थिक व अप्रिय घटनाओं से बचने के दबाव में ऐसी बालिकाओं की शादी कम उम्र में करा रहे हैं, जो इन बालिकाओं के भविष्य के साथ एक अन्याय है. बाल विवाह संबंधित मामलों को रोकने के लिए अब ग्रामीण इलाकों के लोगों के बीच लड़की के शारीरिक व मानसिक विकास संबंधित जागरुकता फैलाने के साथ–साथ शिक्षा के स्तर पर भी ध्यान देना होगा. वहीं, ऐसे मामलों की जानकारी मिलने पर संबंधित विभाग तक इसकी जानकारी पहुंचाना भी हरेक नागरिक का कर्तव्य है. साथ ही हमें अपने आस–पड़ोस में होने वाले इस तरह के मामलों के प्रति जागरूक रहना होगा. अगर आपकी जानकारी में मामला होने के बाद भी किसी बालिका का बाल विवाह होता है, तो उसके माता–पिता के साथ–साथ उस विवाह के लिए आप भी जिम्मेदार हैं.