संविधान किसी नाबालिग को ‘संन्यासी’ बनने से नहीं रोकता: कर्नाटक उच्च न्यायालय
तारीख: 01 अक्टूबर, 2021
स्रोत (Source): नवभारत टाइम्स
तस्वीर स्रोत : नवभारत टाइम्स
स्थान : कर्नाटक
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उडुपी के शिरूर मठ के प्रमुख के रूप में एक नाबालिग के अभिषेक के खिलाफ दायर एक याचिका खारिज कर दी और कहा कि किसी के ‘संन्यासी‘ बनने पर कोई संवैधानिक या वैधानिक रोक नहीं है.
उडुपी के श्री शिरूर मठ भक्त समिति के सचिव एवं प्रबंध न्यासी पी लाथव्य आचार्य और समिति के तीन अन्य सदस्यों ने अनिरुद्ध सरलाथ्या (संन्यास नाम वेदवर्धन तीर्थ) के अभिषेक पर सवाल उठाया था जिनकी आयु 18 वर्ष से कम है.
मुख्य न्यायाशीध सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सचिन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता सरलाथ्या को शिरूर मठ का प्रमुख बनाए जाने से किसी कानूनी या संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन को साबित करने में नाकाम रहे.
उसने कहा, ‘‘न्यायालय का काम धार्मिक पाठ लिखना निश्चित रूप से नहीं है, लेकिन वह धार्मिक विवादों का निपटारा करते समय धार्मिक पाठ का पालन करने और धर्म के अनुसार प्रचलित पुरानी प्रथाओं का पालन करने के लिए बाध्य हैं, जब तक कि इससे किसी के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता.’’ पीठ ने बौद्ध धर्म का उदाहरण दिया, जिसमें बालकों को बौद्ध भिक्षु बनाया जाता है. उसने कहा कि इस संबंध में कोई नियम नहीं है कि ‘संन्यास’ लेने की आयु क्या है.
उसने कहा कि यदि कोई धार्मिक प्रथा सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य या किसी अन्य मौलिक अधिकार के प्रतिकूल नहीं है, तो उसमें अदालत का हस्तक्षेप करना एक संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में अतिक्रमण करना होगा.