2017-2019 तक 24,000 से अधिक बालकों ने आत्महत्या की: एनसीआरबी
तारीख: 2 अगस्त, 2021
स्रोत (Source): द वायर
तस्वीर स्रोत : द वायर
स्थान : नई दिल्ली
देश में साल 2017-2019 के बीच 14 से 18 साल के 24,000 से अधिक बालकों ने आत्महत्या की है, जिनमें परीक्षा में सफल नहीं होने पर 4,000 से अधिक बालकों के आत्महत्या करने के मामले शामिल हैं. बालकों की आत्महत्या संबंधी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को हाल ही में संसद में पेश किया गया. इन आंकड़ों के मुताबिक, 2017-2019 के बीच 24,568 बालकों ने आत्महत्या की, जिनमें 13,325 लड़कियां शामिल हैं.
आंकड़ों के मुताबिक, 2017 में 14-18 साल के 8,029 बालकों ने आत्महत्या की. यह संख्या 2018 में बढ़कर 8,162 और 2019 में बढ़कर 8,377 हो गई. इस आयुवर्ग में आत्महत्या के सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश से सामने आए, जहां 3,115 बालकों ने आत्महत्या की, इसके बाद पश्चिम बंगाल में 2,802, महाराष्ट्र में 2,527 और तमिलनाडु में 2,035 बालकों ने आत्महत्या की. आंकड़ों के मुताबिक, 4,046 बालकों ने परीक्षा में असफल रहने पर, 639 बालकों ने विवाह से जुड़े मुद्दों पर आत्महत्या की. इनमें 411 लड़कियां शामिल हैं.
इसके अलावा 3,315 बालकों ने प्रेम संबंधों के चलते और 2,567 बालकों ने बीमारी के कारण, 81 बालकों ने शारीरिक शोषण से तंग आकर आत्महत्या कर ली. इन आत्महत्याओं की वजह अपने किसी प्रियजन की मौत, नशे का आदी होना, अवैध गर्भावस्था, सामाजिक प्रतिष्ठा का धूमिल होना, बेरोजगारी, गरीबी आदि भी हैं.
कोविड-19 की वजह से स्थिति के और खराब होने की संभावनाओं पर चिंता जताते हुए बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने स्कूली पाठ्यक्रमों में जीवन कौशल प्रशिक्षण को शामिल करने और स्वास्थ्य देखरेख में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करने पर जोर दिया. बालकों के लिए काम करने वाली संस्था ‘क्राई– चाइल्ड राइट्स एंड यू’ की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अधिकारी पूजा मारवाह ने कहा, ‘आत्महत्या का प्रयास करने वाले अधिकतर बालक या किशोर मानसिक तनाव, चुनौतियों आमतौर पर अवसाद से जूझ रहे होते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘छोटे बालक अक्सर आवेग में आकर आत्महत्या की कोशिश करते हैं. वे दुख, भ्रम, गुस्से, तनाव या परेशानी या हाइपर एक्टिविटी में आकर ऐसा करते हैं. किशोरों में आत्महत्या के मामले दबाव, खुद पर विश्वास की कमी, सफल होने का दबाव, वित्तीय अनिश्चितता, निराशा, अवसाद आदि की वजह से हो सकते हैं. कुछ किशोर आत्महत्या को अपनी समस्याओं का समाधान मानते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि प्रत्येक बालक और किशोर गुणवत्तापरक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और मानसिक–सामाजिक सहयोग पाने का हकदार है. उनका अच्छा मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करके उनके व्यक्तित्व को पूरी तरह से निखर कर सामने लाने में मदद मिलेगी, ताकि वे समाज के जिम्मेदार सदस्य बन सकें.’
द वायर की इस खबर को पढ़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करे.