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POCSO मामलों में जिरह के दौरान चूक को चिह्नित करने में विफल रहने पर गवाह को फिर से नहीं बुला सकते : केरल हाईकोर्ट

तारीख: 14 दिसंबर, 2021
स्रोत (Source): लाइव लॉ

तस्वीर स्रोत : लाइव लॉ

स्थान : केरल

केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि पोकसो मामलों में जिरह के दौरान एक गवाह के पिछले बयानों की चूक (ओमिशन) को चिह्नित करने में विफल रहना हमेशा उन गवाहों को फिर से बुलाने का एक वैध आधार नहीं होता है. हालांकि, याचिका का निपटारा करने से पहले, न्यायमूर्ति एमआर अनीथा ने स्पष्ट किया है किः ”मैं यह भी स्पष्ट करती हूं कि मैं इसे एक मिसाल के रूप में नहीं बनाना चाहती हूं कि गवाहों से जिरह के दौरान महत्वपूर्ण चूक को चिह्नित करने की आवश्यकता नहीं है.”

 

याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(एफ) (बलात्कार) और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम(पोकसो) की धारा 3 (पेनेट्रेटिव लैंगिक हमला) रिड विद धारा 4, धारा 5 (ऐग्रवेटिड पेनेट्रेटिव लैंगिक हमला) रिड विद 6 तहत मामला दर्ज किया गया था. याचिकाकर्ता के अनुसार, जांच अधिकारी को छोड़कर अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों से जिरह हो चुकी है. हालांकि, उसने आरोप लगाया है कि अभियोजन पक्ष के पहले दो गवाहों से जिरह के दौरान, वह अपने वकील को उन गवाहों से पूछे जाने वाले कुछ सवालों के बारे में निर्देश देने में विफल रहा है.

 

याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि ये सवाल उसकी बेगुनाही साबित करने के लिए जरूरी हैं. आगे यह भी कहा गया कि पीड़िता व उसकी मां के सीआरपीसी की धारा 161 और धारा 164 के तहत दर्ज कराए गए बयानों में काफी विरोधाभास है. लेकिन उसका वकील गवाहों के बयान का खंडन करने के लिए उनके पिछले बयानों पर गवाहों का ध्यान आकर्षित करने से चूक गया था. इसलिए उसने विशेष अदालत के समक्ष पीड़िता और उसकी मां को फिर से कोर्ट बुलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 311 के तहत एक याचिका दायर की थी.

 

इस याचिका को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था. उसी से व्यथित, याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता के.एम. फिरोज और एम. शजना के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. दलीलें आरोपी ने तर्क दिया कि यह कानून की एक स्थापित स्थिति है कि महत्वपूर्ण चूक विरोधाभास के समान है और प्रासंगिक हिस्से को गवाहों के सामने रखा जाना चाहिए और गवाहों को विसंगति को समझाने का अवसर दिया जाना चाहिए. आगे यह तर्क दिया गया कि पीडब्ल्यू 1 और पीडब्ल्यू 2 से जिरह के दौरान, कई महत्वपूर्ण चूक सामने आई थी लेकिन उन्हें चिह्नित नहीं किया गया था. उन चूकों को चिन्हित करने के उद्देश्य से, उन्होंने तर्क दिया कि गवाहों को फिर से कोर्ट बुलाना अत्यंत आवश्यक है.

 

 

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