अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल
उत्तर: मानवी वाहतुक एक ऐसी संज्ञा है, जो ऐतिहासिक रूप से शोषण को परिभाषित करने के लिए इस्तेमाल की जाती है, और इस कृत्य को अपराध माना गया है. पिछले कुछ सालों में उन देशों और अंतरराष्ट्रीय निकायों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है, जिन्होंने कानून के तहत इस कृत्य की निंदा करते हुए, उसे कानूनन अपराध क़रार दिया है.
अक्सर, ट्रैफिकिंग (trafficking) यानी ‘तस्करी’ शब्द का इस्तेमाल मानवी वाहतुक के लिए किया जाता है, लेकिन यह बहुत हद तक सही नहीं है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से मानवीय समाजों ने ड्रग्स की ‘तस्करी’ को अपराध माना है, यानी नशीले पदार्थों की ‘तस्करी’. इन दिनों आप, बाल तस्करी, दुल्हन तस्करी, आदि संज्ञाओं का इस्तेमाल देख सकते हैं. यह संज्ञाएं उस सामाजिक भूमिका को संदर्भित करती हैं, जो ‘तस्करी’ के साथ जुड़ी हैं. कभी–कभी ‘ट्रैफिकिंग’ शब्द का इस्तेमाल सेक्स ट्रैफिकिंग, अंग व्यापार के लिए ‘ट्रैफिकिंग’, शत्रुता के लिए ‘ट्रैफिकिंग’, छाया मनोरंजन (शैडो एंटरटेनमेंट) के लिए ‘ट्रैफिकिंग’ आदि के रूप में भी किया जाता है. यहां ये शब्द ‘तस्करी’ के उद्देश्य या अंतिम परिणाम को दर्शाते हैं.
संक्षेप में कहें तो वाहतुक, बलपूर्वक, धोखाधड़ी, धोखे, ज़बरदस्ती, और इस तरह के आपराधिक या अनुचित साधनों के साथ गैरकानूनी और आपराधिक उद्देश्यों के लिए व्यक्तियों की खरीद, बिक्री, उन्हें गिरवी रखना, स्थानांतरित करना, उनका परिवहन करना, या उन्हें बंधक बनाना है. व्यक्तियों का वाहतुक बाज़ारू लैंगिक शोषण (पारंपरिक रूप से वेश्याव्यवसाय कहलाने वाले) सेवा, बंधन, जबरन श्रम, अंग–व्यापार और ऐसे अन्य शोषणकारी उद्देश्यों के लिए किया जाता है. वाहतुक के अंतर्गत, वाहतुक किए गए व्यक्ति के अलावा और उसकी कीमत पर, किसी अन्य व्यक्ति के मुनाफ़े या लाभ के लिए वाहतुक किया जाना आता है.
इस काम को अंजाम देने के लिए ज़्यादातर गैरकानूनी, आपराधिक और अनैतिक साधनों, लालच, धोखे, नशीली दवाएं देना यानी ड्रगिंग, आपराधिक बल, कैद करना, अपहरण/जबरन बंदी बना लेने की कार्रवाई की जाती है.
वाहतुक के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले साधन हमेशा बेहद स्पष्ट नहीं होते. किसी की कमज़ोरी, शक्तिहीनता, किसी दूसरे व्यक्ति पर अपने अधिकार का दुरुपयोग भी वाहतुक का ज़रिया हो सकता है.
यही वजह है कि मानवी वाहतुक के तीन घटक हैं– कृत्य (Act), साधन (Means) और अंतिम उद्देश्य (End Purpose)
कृत्य– व्यक्ति को ख़रीदना, जबरन भर्ती करना, प्राप्त करना, दोहन करना, परिवहन करना, स्थानांतरित करना
साधन– बल, धोखाधड़ी, धोखे, ज़बरदस्ती, खरीद, ड्रगिंग, गलत तरीके से भ्रमित करना, अपहरण/जबरन बंदी बना लेने की कार्रवाई, और ऐसे अन्य आपराधिक साधन
अंतिम उद्देश्य या गंतव्य– उद्देश्य यह है कि वाहतुक होने वाले व्यक्ति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के लाभ या मुनाफ़े के लिए, वाहतुक किए गए व्यक्ति का शोषण. मानवी वाहतुक के कुछ सामान्य उद्देश्य यानी अंतिम अपराध हैं; सेक्स व्यापार, बंधुआ या मजबूर श्रम, अंग व्यापार, दासता, दासता जैसी स्थिति, जबरन सेवा के लिए, अवैध रूप से गोद लेना (बालक को बेचना), विज्ञापनों के ज़रिए दुल्हन तलाशना (मेल ब्राइड), मानव बलि, जबरन बाल सैनिक बनाना. ऊपर दिए गए उद्देश्य यानी गतिविधियां वास्तव में वे अपराध हैं, जिनके लिए व्यक्ति को किसी अंतिम अपराध तक पहुंचाया जाता है, इसलिए उपयुक्त रूप से इन्हें अंतिम अपराध हेतु यानी destination crimes कहा जाना चाहिए.
उत्तर: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय (UNCRC) व संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् (UNHRC) के प्रोटोकॉल के तहत, व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के वाहतुक को खत्म करने और उसकी सज़ा को लेकर, अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध (“पलेर्मो प्रोटोकॉल“) में मानवी वाहतुक को निम्न रूप में परिभाषित किया गया है:
- “व्यक्तियों के वहातुक” का अर्थ होगा, शोषण के उद्देश्य से, किसी व्यक्ति को नियुक्त या भर्ती करना, परिवहन करना, स्थानांतरित करना, उसका उत्पीड़न करना या फिर व्यक्ति या व्यक्तियों को प्राप्ति करना, बल या अन्य प्रकार की ज़बरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी, धोखे, ताकत के दुरुपयोग या व्यक्ति की कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर, भुगतान या लाभ की प्राप्ति के द्वारा या फिर व्यक्ति को लाभ पहुंचाकर उसकी या ऐसे किसी व्यक्ति की सहमति प्राप्त करना जिसका उस पर नियंत्रण हो. शोषण में न्यूनतम रूप से, दूसरों को वेश्याव्यवसाय या अन्य तरह के लैंगिक शोषण में धकेलना, जबरन श्रम या सेवाओं के लिए बाध्य करना, दासता या दासता को बढ़ावा देने वाली प्रथाएं, या अंगों को हटना/काटना शामिल है;
- इस लेख के उप–अनुच्छेद (a) में निर्धारित शोषण के मद्देनज़र वाहतुक किए गए व्यक्ति की सहमति अप्रासंगिक होगी अगर, उप–अनुच्छेद (a) में निर्धारित किसी भी साधन का उपयोग किया गया है;
- शोषण के उद्देश्य से किसी बालक की नियुक्ति/भर्ती, परिवहन, स्थानांतरण, दोहन या उसे प्राप्त करना, “मानवी वहातुक” माना जाएगा, भले ही इसमें इस लेख के उप–अनुच्छेद (a) में निर्धारित कोई भी साधन शामिल न हों;
- “बालक” का अर्थ है 18 साल की उम्र से कम का कोई भी व्यक्ति
उत्तर: भारत के प्रमुख आपराधिक कानून, भारतीय दंड संहिता-1860 में पहली बार साल 2013 में एक संशोधन के तहत, सेक्शन 370 के अंतर्गत, संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा को मामूली फेरबदल के साथ अपनाया गया.
भारतीय दंड संहिता का सेक्शन 370
(1) जो भी कोई, शोषण के उद्देश्य से, किसी व्यक्ति को (i) नियुक्त करता है, (ii) वाहतुक करता है, (iii) आश्रयीत करता है, (iv) व्यक्ति/व्यक्तियों को स्थानांतरित या (v) प्राप्त करता है, इस व्यक्ति को (i) धमकियां देकर, या (ii) बल या किसी अन्य प्रकार के दबाव का उपयोग कर, या (iii) अपहरण करके, या (iv) धोखाधड़ी, छल, व ताक़त का गलत इस्तेमाल करके, या फिर (vi) भुगतान या लाभ लेने या देने के बदले वह उस व्यक्ति की सहमति हासिल करता है जिसका, नियुक्त, वहातुक, आश्रायीत या स्थानांतरित किए गए व्यक्ति पर नियंत्रण हो, तो वह मानवी वाहतुक का अपराध कर रहा है. [1].
उत्तर: हाँ! मानवी वाहतुक , वेश्याव्यवसाय से अलग है.
मानवी वाहतुक के अंतर्गत किसी व्यक्ति के शोषण के लिए उसे धोखा देकर, ज़बरदस्ती कर, धोखाधड़ी से, मजबूरी का फ़ायदा उठाकर उसे प्राप्त करना, बेचना, स्थानांतरित करना, वाहतुक करना शामिल है. वेश्याव्यवसाय, वाहतुक किए गए व्यक्ति के शोषण का एक तरीका है. सख्त रूप में कहा जाए तो कानूनी रूप से वेश्याव्यवसाय किसी व्यक्ति का बाज़ारू लैंगिक शोषण है. मानवी वाहतुक एक ऐसे व्यक्ति को उपलब्ध कराने का कार्य है, जिससे वेश्याव्यवसाय कराया जा सके.
उत्तर: जो कोई भी असुरक्षित और उपलब्ध है और जिसके वाहतुक से मुनाफ़ा कमाया जा सकता है, उसके वाहतुक का जोखिम बढ़ जाता है. शिशुओं का अवैध रूप से गोद लेने के लिए, अंग–व्यापार के लिए और भीख मांगने के संगठित व्यापार के लिए वाहतुक किया जाता है. बालकों का इन सभी उद्देश्यों के साथ–साथ श्रम क्षेत्र के लिए भी वाहतुक किया जाता है. युवाओं को श्रम क्षेत्र के शोषण, लैंगिक व्यापार, छाया मनोरंजन (shadow entertainment) आदि के लिए वाहतुक किया जाता है. युवतियों का भी आम या अस्थायी दुल्हनों के रूप में वाहतुक किया जाता है. वृद्धों का अंग–व्यापार के लिए वाहतुक किया जाता है. हर धर्म, राजनीतिक व्यवस्था, उम्र, नस्ल, पंथ के लोग वाहतुक का शिकार होते हैं. गरीब लोग, असमर्थ और असुरक्षित व्यक्ति/गरीब देशों के लोग, निचले सामाजिक तबके के लोग, युद्ध के शिकार लोग, नस्लीय हिंसा के शिकार लोग, आपदाओं से प्रभावित लोगों के वाहतुक का शिकार होने की संभावना अधिक रहती है.
उत्तर: हां, मानवी वाहतुक की गंभीर समस्या के प्रति दुनिया अब सजग हो गई है और मानवी वाहतुक को रोकने व इस अपराध से पीड़ित व्यक्तियों की प्रतिष्ठा को बहाल करने को लेकर कई तरह की कोशिशें की जा रही हैं.
दुनियाभर के देशों ने एकजुट होकर और व्यक्तिगत रूप से, कानून पारित कर, नीतियों की घोषणा कर और व्यक्तियों के वाहतुक को रोकने के लिए योजनाएं बनाकर इस समस्या के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है. उन्होंने वाहतुक विरोध के एजेंडे को पूरा करने के लिए कार्यक्रमों और आवंटित वित्तीय और प्रबंधकीय संसाधनों की भी घोषणा की है.
कई सिविल सोसाइटी संगठनों और प्रतिबद्ध व्यक्तियों ने वाहतुक को रोकने की दिशा में बड़ा योगदान दिया है. सिविल सोसाइटी क्षेत्र इस मामले में आगे है, और इसने विभिन्न क्षेत्रों में रोकथाम और संरक्षण से लेकर पुनर्वास और स्वदेश लौटने की कार्रवाई की दिशा में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं.
उत्तर: मानवी वाहतुक का अंतिम उद्देश्य उस व्यक्ति का शोषण है, जिसका वाहतुक किया जाता है. इसके तहत वाहतुक किए गए व्यक्ति का जीवनभर शोषण किया जाता है, ताकि वाहतुक करने वाले व्यक्ति/व्यक्तियों को लाभ मिल सके. शोषण भरा जीवन अलग–अलग व्यक्तियों के लिए अलग होता है, और इसमें कई तरह की गतिविधियां शामिल हो सकती हैं, हालांकि यह वेश्याव्यवसाय, दासता, सेवा, बंधुआ मज़दूरी, गिरमिटिया श्रम, संगठित होकर भीख मांगने के व्यवसाय, मानव अंगों के व्यापार, मेल दुल्हन (mail brides), गोद लेने/शिशुओं को बेचने वाले रैकेट, अवैध व्यावसायिक सरौगसी, बालकों के साथ ऊंटों की दौड़ तक ही सीमित नहीं है.
उपर्युक्त सभी गतिविधियों को ‘अंतिम अपराध हेतु‘ कहा जा सकता है. अधिकांश देशों में ‘अंतिम अपराध हेतु‘ के रूप में नामित गतिविधियां कानून द्वारा निषिद्ध हैं. भारत में, हर प्रकार के ‘अंतिम अपराध हेतु‘ को संबोधित करने के लिए अलग–अलग कानून हैं.
उत्तर: परंपरागत रूप से वेश्याव्यवसाय और गुलामी यानी दासता, मानवी वाहतुक के दो प्रमुख ‘अंतिम अपराध हेतु‘ हैं. भारतीय दंड संहिता 1860 में सेक्शन 370 और 370A में गुलामी के ख़िलाफ़ प्रावधान था. बाद में वर्ष 2013 में पहले एक अध्यादेश के ज़रिए और बाद में आईपीसी में एक संशोधन द्वारा गुलामी के ख़िलाफ़ प्रावधान को मानवी वाहतुक के ख़िलाफ़ एक परिभाषा से बदल दिया गया. कानूनों में बंधुआ मज़दूरी और बाल श्रम के ख़िलाफ़ प्रावधान थे. वर्ष 1976 में, बंधुआ श्रम प्रणाली के ख़िलाफ़ एक केंद्रीय कानून पारित किया गया था, जो प्रभावी तौर पर श्रम के लिए वाहतुक के अपराधों को समावेशित करता था. वर्ष 1986 में बाल श्रम के ख़िलाफ़ कानून को अमल में लाया गया.
वर्ष 2018 में, वाहतुक के ख़िलाफ़, भारतीय संसद के निचले सदन में, एक केंद्रीय कानून पारित किया गया था, लेकिन संसद भंग होने से पहले उच्च सदन में इसे पारित नहीं किया गया, इसलिए भारत में आज तक (2020 तक), मानवी वाहतुक के ख़िलाफ़ एक भी कानून नहीं है.
साल 2020 तक, मानवी वाहतुक से जुड़े ‘अंतिम अपराध हेतु‘ जैसे बाज़ारू लैंगिक शोषण, जबरन श्रम, श्रम शोषण, मानव अंगों का व्यापार, गैर कानूनी रुप से गोद लेने, सरौगसी, भीख मांगना आदि के ख़िलाफ़ कानून और/या प्रावधान हैं. इनमें से कुछ में ‘अंतिम अपराध हेतु‘ हुए मानवी वाहतुक के घटक भी शामिल हैं.
उत्तर: बाज़ारू लैंगिक शोषण उस गतिविधि के लिए सही व सटीक शब्दावली या संज्ञा है जिसे पारंपरिक और आसान भाषा में, जो कि दरअसल गलत है, वेश्याव्यवसाय कहा जाता है. यह एक ऐसी गतिविधि है;
● जो एक संगठित तरीके से की जाती है
● किसी व्यक्ति के लैंगिक शोषण से जुड़ी है
● जिसमें एक शोषक शामिल है
● जिसमें लैंगिक शोषण एकल या संगठित तरीके से किया जाता है
● शोषक के लाभ के लिए और पीड़ित की कीमत पर
● जो शोषित व्यक्ति के लैंगिक संकायों तक ख़रीदार को पहुंच प्रदान करता है
● जहां किसी व्यक्ति की लैंगिकता किसी भी ग्राहक को बेची जाती है, जो इसके लिए भुगतान करता है.
‘शोषण’, बाज़ारू लैंगिक शोषण की संज्ञा से जुड़ा एक अनिवार्य लक्षणात्मक शब्द है.
इस संज्ञा में बाज़ारू शब्द व्यक्ति या उसके संकायों के बाज़ारीकरण को इंगित करता है, और उसके उत्पादन/संग्रह (ख़रीद), भंडारण, परिवहन, पैकिंग, लेबलिंग, प्रदर्शन, विज्ञापन, बिक्री, खुदरा आउटलेट, बिक्री प्रबंधक और कमीशन को निर्धारित करता है.
वेश्याव्यवसाय शब्द को पारंपरिक रूप से आसान भाषा में, एक महिला द्वारा उसकी लैंगिक बिक्री के एकल कार्य के रूप में समझा जाता था. इसलिए बोलचाल की भाषा में वेश्याव्यवसाय शब्द अपने आप में शोषण का भाव संप्रेषित नहीं करता था.
परंपरागत रूप से वेश्याव्यवसाय शब्द किसी महिला के अलावा किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति या भूमिका को इंगित नहीं करता, जो कि उसकी लैंगिक बिक्री का विक्रेता और पुरुष खरीदार है. वेश्याव्यवसाय शब्द ने वास्तविकता को सही ढंग से व्यक्त नहीं किया, लेकिन गलत तरीके से महिला को एक स्वतंत्र एकल घटक के रूप में पेश किया, जो अपने स्वयं के मुनाफ़े के लिए अपनी लैंगिकता को बेचती है.
न तो वेश्याव्यसाय शब्द की पारंपरिक समझ में और न ही वेश्याव्यसाय की 1986 से पहले की कानूनी परिभाषा में, लैंगिक व्यवसाय (sex trade) के आपराधिक संगठन रूप या खरीददारों, जालसाज़ों, प्रबंधकों, वेश्यालय के रखवालों, दलालों और फाइनेंसरों की भूमिका का संज्ञान लिया गया है.
बाज़ारू लैंगिक शोषण (सीएसई) शब्द किसी भी अन्य शब्द या संज्ञाओं की तुलना में वास्तविकता को अधिक सटीक रूप से समावेशित करता है, जिसका उपयोग यहां चर्चा के विषय के रूप में किया गया है.
उत्तर: प्रवासन किसी व्यक्ति, परिवार या लोगों के समूह द्वारा निवास को अपेक्षाकृत स्थायी रूप से स्थानांतरित करना है. ऐतिहासिक रूप से, ‘प्रवासन’ शब्द का उपयोग, जीवन में बेहतरी के लिए स्वैच्छिक रूप से किए गए स्थानांतरण को इंगित करने के लिए किया गया है. भारतीय महिलाएं शादी के परिणामस्वरूप देश भर में अपने गांव, ज़िले, राज्यों या कुछ मामलों में देश के अलग–अलग हिस्सों में नियमित रूप से पलायन या प्रवासन करती हैं. इसे वैवाहिक प्रवासन के रूप में जाना जाता है. भारत में शैक्षिक सुविधाओं के असंतुलित विकास के कारण, छात्र आबादी भी बेहतर या उच्च शिक्षा की सुविधाओं वाले स्थानों पर प्रवासन करती है. अन्य मामलों में, महत्वपूर्ण नौकरियों ने लोगों को अपने मूल स्थान को छोड़कर नए स्थानों पर स्थानांतरित होने के लिए मजबूर किया है, अक्सर स्थायी रूप से. इन सभी में स्वेच्छा का भाव और जीवन में बेहतरी का उद्देश्य शामिल था.
ऐतिहासिक रूप से देखें तो, व्यक्तियों, परिवारों और लोगों के समूहों ने युद्ध, संगठित हिंसा (दंगे, नस्लीय हिंसा), अकाल, सूखा और प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, जंगल की भीषण आग, व सुनामी, महामारी के प्रकोप, उद्योगों के बंद होने, परियोजनाओं के चलते विस्थापन, या वैवाहिक जीवन में परित्याग, अपहरण आदि जैसे व्यक्तिगत हादसे जैसी परिस्थितियों के कारण अपना निवास स्थान बदला है. इस श्रेणी में स्वैच्छिकता का अभाव है. इसलिए इसे जबरन प्रवास, बेदखली, जड़ों से उखाड़ना, विस्थापन, या तनाव के चलते प्रवासन के रूप में वर्णित किया जाना बेहतर है.
मानवी वाहतुक , प्रवासन के समान नहीं है, क्योंकि इसमें सहमति या स्वैच्छिकता का तत्व गायब है. कुछ मामलों में, स्वैच्छिकता का तत्व दिखाई देता है, लेकिन नज़दीक से देखने पर पता चलता है कि सहमति जालसाज़ व्यक्ति द्वारा धोखाधड़ी की व्यापक योजना के तहत उत्पन्न की गई है.
मानवी वाहतुक की व्याख्या जब प्रवासन के रूप में की जाती है, तो उसमें निहित अपराध को अदृश्य या तुच्छ बना दिया जाता है, जो गलत और अनुचित है.
वाहतुक और प्रवासन या पलायन हालांकि नज़दीकी रूप से संबंधित हैं. असुरक्षित प्रवासन अक्सर आसानी से वाहतुक में बदल जाता है. जबकि कुछ लोग यह वैचारिक गलती अनजाने में करते हैं, कुछ अन्य लोग इसे जानबूझकर करते हैं, क्योंकि उन्हें मानवी वाहतुक के अंतिम अपराध हेतु में रुचि है, जैसे श्रम जनित शोषण, लैंगिक व्यवसाय आदि.
उत्तर: मानवी वाहतुक के अधिकांश मामलों में, पीड़ित को उसके मूल स्थान से उस गंतव्य स्थान पर स्थानांतरित कर दिया जाता है, जहाँ उसका शोषण होता है. लैंगिक शोषण के कुछ मामलों में, शोषक लंबी या छोटी दूरी तय करते हैं और उन देशों और विदेशी स्थानों की यात्रा करते हैं जहाँ वे बिना किसी जोखिम या कानून के डर के पीड़ितों का लैंगिक शोषण कर सकते हैं. इस अवधारणा को लैंगिक पर्यटन कहा जाता है. आज, व्यवसाय और मनोरंजन पर्यटन के एक बड़े हिस्से में लैंगिक पर्यटन शामिल है. कुछ जगहें लैंगिक पर्यटन की विश्व राजधानियों के रूप में उभरी हैं, जैसे थाईलैंड में बैंकॉक, नीदरलैंड में एम्स्टर्डैम और भारत में गोवा.
उत्तर: नहीं! देशांतर्गत लैंगिक पर्यटन भी उतना ही वास्तविक है जितना अंतरराष्ट्रीय लैंगिक पर्यटन.
A: नहीं! जैसा कि प्रश्न संख्या 01 में बताया गया है, मानवी वाहतुक का अर्थ मनुष्य को आपराधिक माध्यमों से प्राप्त करना और उन्हें विभिन्न प्रकार के शोषणकारी उद्देश्यों या अंतिम अपराध हेतु जबरन धकेलना है. इस प्रकार, यह अंतिम अपराध हेतु के समान नहीं हैं. ‘सेक्स ट्रैफिकिंग’, लैंगिक व्यवसाय से अलग है. पहले को, दूसरा उद्देश्य सिद्ध करने की दृष्टि से किया जाता है. अधिक स्पष्ट रूप से मानवी वाहतुक, गुलामी या बंधुआ मज़दूरी समानार्थी नहीं हैं. यह दोनों अपने आप में अलग और विशिष्ट हैं, पर नज़दीकी रूप से एक दूसरे जुड़े हुए भी हैं.
उत्तर: नहीं! हम अक्सर कुछ लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि भारत में वेश्याव्यवसाय अवैध नहीं है या भारत में वेश्याव्यवसाय कानूनी है. कानून की ये दोनों व्याख्याएं गलत हैं. समस्या को सही ढंग से समझने के लिए पहले यह समझना होगा कि वेश्याव्यवसाय शब्द का क्या अर्थ है. यह महत्वपूर्ण है कि भारतीय कानून– अनैतिक वाहतुक (रोकथाम) अधिनियम 1956, जब 1986 में संशोधित किया गया, तो वेश्याव्यवसाय की बहुत प्रगतिशील और स्पष्ट परिभाषा को अपनाया गया. ITP अधिनियम के सेक्शन 2 (f) के मुताबिक–
“सेक्शन 2 (f) “वेश्याव्यवसाय” का अर्थ है व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए व्यक्ति/व्यक्तियों का लैंगिक शोषण या उनके साथ दुर्व्यवहार और इसी आधार पर “वेश्या” शब्द को समझा और अभिव्यक्त किया जाएगा” यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि ITPA 1956 कानून, वेश्याव्यवसाय को बाज़ारू लैंगिक शोषण के रूप में परिभाषित करता है और इस कृत्य को करने वाले, इसे प्रेरित करने वाले या इसे बढ़ावा देने वालों को दंडित करता है. इस मायने में तर्कसंगत यही है कि इसी कानून के अंतर्गत वेश्याव्यवसाय को एक वैध गतिविधि के रूप में नहीं माना जा सकता है. इसी तरह, भारत में कोई भी अन्य कानून वेश्याव्यवसाय को कानूनी अनुमति नहीं देता है.
लैंगिक व्यवसाय शब्द भी ऐसी ही एक संज्ञा है जिसका उपयोग वेश्याव्यवसाय या बाज़ारू लैंगिक शोषण के लिए किया जाता है. भारत में किसी भी कानून के तहत लैंगिक व्यवसाय की अनुमति नहीं है.
वेश्याव्यवसाय शब्द के पारंपरिक (ITPA में 1986 से पहले हुए संशोधन) उपयोग के अनुसार– वेश्याव्यवसाय एक महिला द्वारा पुरुष को अपनी लैंगिकता बेचने का कृत्य है. यह एक दंडनीय कार्य नहीं था, हालांकि महिला के अधिकार के रूप में इस कृत्य को सकारात्मक या सहायक मान्यता प्राप्त नहीं थी, और इस तरह की बिक्री से जुड़ी अन्य गतिविधियां जैसे, इसे एक संगठित लैंगिक व्यवसाय बनाना, वेश्यालय चलाना, सार्वजनिक रूप से या कुछ निषिद्ध क्षेत्रों के पास लैंगिक व्यवसाय के लिए याचना करना, आदि दंडनीय थे.
जब वेश्याव्यवसाय को बाज़ारू लैंगिक शोषण के रूप में परिभाषित किया जाता है, जैसा कि ऊपर (ITP अधिनियम का सेक्शन 2 {f}) करता है, तो कानून निम्नलिखित कृत्यों को दंडित करने का प्रावधान रखता है;
- वेश्याव्यवसाय के लिए किसी को प्राप्त करना या उकसाना– सेक्शन 5
- वेश्याव्यवसाय के लिए किसी को क़ैद करना या बंधक बनाना (विभिन्न रूप से)- सेक्शन 6
- वेश्यालय चलाना या संभालना– सेक्शन 3 वेश्यालय चलाने के लिए किसी का आधार/जगह देना
- वेश्याव्यवसाय द्वारा की गई किसी की कमाई पर रहना (महिला के 18 वर्ष से कम उम्र के बालकों के इसके अंतर्गत छूट दी गई है)- सेक्शन 4
- महिला द्वारा अकेले खुद को लैंगिक बिक्री के लिए प्रस्तुत किए जाने के लिए उसे आधार/जगह प्रदान करना
- किसी अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान, पूजा स्थल, और समय–समय पर सरकार द्वारा निर्धारित ऐसे स्थानों से 200 मीटर के दायरे में वेश्याव्यवसाय के लिए आग्रह करना– सेक्शन 7
- सार्वजनिक स्थान पर (अधिकांशतः) एक महिला द्वारा लैंगिकता की बिक्री या प्रलोभन– सेक्शन 8
- सार्वजनिक स्थान पर (अधिकांशतः) दलाल द्वारा लैंगिकता की बिक्री या प्रलोभन–सेक्शन 8
- वेश्याव्यवसाय को अपनाने के लिए किसी को प्रलोभन देना–सेक्शन 9
जब हम विभिन्न प्रकार के कानूनों को एक साथ रखते हैं, और वेश्याव्यवसाय को लेकर कानून की उचित राय/ रुख का पता लगाते हैं, तो भारत में कोई भी सुरक्षित रूप से यह कह सकता है कि: यदि कोई वयस्क (IPC/ POCSO और ITPA के तहत 18 वर्ष से कम उम्र का नहीं) व्यक्ति (महिला और पुरुष दोनों) अकेले (दो या दो से अधिक व्यक्ति एक साथ नहीं/वह उस जगह को वेश्यालय की संज्ञा देगा और ITP अधिनियम के तहत उसे सज़ा दी जाएगी) अपनी शारीरिक लैंगिकता (अश्लील साहित्य नहीं/ IPC, ITA, POCSOA के तहत अपराध) की बिक्री एक निजी स्थान पर करता/करती है (न ही सार्वजनिक जगह पर और न ही ITP अधिनियम और संबंधित पुलिस अधिनियमों के तहत चिन्हित और निषिद्ध स्थानों पर) यानी ऐसी जगह जो पूजाघर, शैक्षणिक संस्थान या अस्पताल के 200 मीटर दायरे में हो, एक ऐसे व्यक्ति को (जो विषमलैंगिक या समलैंगिक हो) तो यह भारत में दंडनीय अपराध नहीं है.
बांग्लादेश में, जहां 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिला कानूनन अदालत के समक्ष अनुरोध कर सकती है और किसी पुरुष को अपनी लैंगिकता बेचने का लाइसेंस प्राप्त कर सकती है, भारत में इस तरह के व्यवसाय की स्पष्ट और सकारात्मक मान्यता के लिए कोई प्रावधान नहीं है.
उत्तर: हाँ! उसी प्रकार जिस तरह किसी व्यक्ति को एक निश्चित कार्य करने की स्वतंत्रता या अधिकार है (इस मामले में लैंगिकता को बेचना), उस व्यक्ति की यह भी ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को परेशान न करे या अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए किसी अन्य के अधिकारों का हनन न करे. जिस तरह व्यक्ति के कुछ अधिकार होते हैं, वैसे ही अन्य लोगों और समाज के भी कुछ विशेष अधिकार होते हैं, और इस मायने में अधिकारों का टकराव भी होता है. किसी व्यक्ति द्वारा लैंगिकता को बेचने का अधिकार, समाज के अन्य व्यक्तियों के संबंधित अधिकारों द्वारा सीमित है.
ITPA सेक्शन 7 (ए) यह सुनिश्चित करता है कि जनता का कोई सदस्य, गंभीर परिस्थितियों में मौजूद लोग और प्रभावोन्मुख (impressionable) उम्र के बालक और किशोर, अनैच्छिक रूप से वेश्याव्यवसाय, अश्लील प्रदर्शन, या लैंगिक प्रलोभन से जुड़े कार्यों के संपर्क में नहीं आएं.
ITPA सेक्शन 20, निवासियों के इस अधिकार को सुनिश्चित करता है कि उनके सामने वेश्याव्यवसाय से संबंधित गतिविधियों का प्रदर्शन न हो या वह उसके चलते परेशान न हों, जिसमें लैंगिकता को बेचने और खरीदने के इरादे से प्रवास के स्थान पर अजनबियों का बार–बार आना शामिल है. यह संबंधित मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देता है कि वह उचित जांच और पूछताछ के बाद महिला को उस जगह से बेदखल कर सकते हैं.
सेक्शन 8 (a) कहता है,
“जो कोई भी, किसी सार्वजनिक स्थान पर या सार्वजनिक रूप से दिखाई देने वाली जगह पर, और इस तरह से कि किसी भी सार्वजनिक स्थान से जिसे देखा या सुना जा सकता है, चाहे वह किसी इमारत या घर के भीतर हो या नहीं – (a) शब्दों से, इशारों से, खुद को प्रदर्शित कर (चाहे वह खिड़की से या किसी इमारत या घर की बालकनी से या किसी अन्य तरीके से हो), या छेड़छाड़ कर, या आकर्षित कर या किसी व्यक्ति के ध्यान को आकर्षित करने के प्रयास करता है, वेश्याव्यवसाय के उद्देश्य से;…
उसे पहली बार अपराध सिद्ध होने पर दंडित किया जा सकता है, जो छह महीने तक की कारावास की सज़ा हो सकती है या फिर जुर्माना, जो पांच सौ रुपये तक, या फिर दोनों सज़ाए एक साथ दी जा सकती हैं.
हालाँकि ये अपराध हैं, लेकिन कानून का उद्देश्य उपरोक्त प्रावधानों के उल्लंघन के लिए व्यक्ति जो आमतौर पर महिला है उसे कठोर दंड देना नहीं है, सेक्शन 10-A के मुताबिक.
सेक्शन 10A. सुधारात्मक संस्थान के निवास में रखना
(1) कहां–
(a) एक महिला अपराधी को सेक्शन 7 या सेक्शन 8, 39 [***] के तहत अपराध का दोषी पाया जाता है; तथा
(b) चरित्र, स्वास्थ्य और अपराधी की मानसिक स्थिति के मद्देनज़र और मामले की अन्य परिस्थितियां ऐसी हैं कि यह समझा जाए कि उसे हिरासत में रखा जाना चाहिए और इस तरह के निर्देश और अनुशासन के तहत जो उसके सुधार के लिए अनुकूल हैं, न्यायालय द्वारा कारावास की सज़ा के एवज़ में, सुधारात्मक संस्थान में निवास का आदेश दिया दिया जाना कानूनन है, जो दो साल से कम नहीं हो और पांच साल से अधिक नहीं हो, जैसा कि अदालत उचित समझती हो.
यह सब इंगित करता है कि कानून;
–उस महिला (महिला अपराधी) को दंडित करने का लक्ष्य नहीं रखता है, जिसने लैंगिकता की बिक्री की हो
–सेक्शन 7 और सेक्शन 8 के उल्लंघन के लिए महिला को दंडित करने का लक्ष्य नहीं रखता है
–संगठित रूप लैंगिक व्यापार और लैंगिक व्यापार करने वालों को दंडित करने का लक्ष्य रखता है
उत्तर: वांछित बदलाव लाने के लिए समाज के भीतर प्रगतिशील सामाजिक भावना होना पर्याप्त नहीं है. इसके कार्यान्वयन के लिए, राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति ज़रूरी है, जिसके तहत बजटीय प्रावधान और कानून को लागू करने संबंधी नियम बनाए जा सकते हैं. संबंधित कानूनों को लागू करने की ज़िम्मेदारी जिन लोगों और इकाईयों को सौंपी गई है, वह उसी अन्यायपूर्ण समाज से हैं, जो सामाजिक उत्पीड़न और मानवी वाहतुक से जुड़े शोषण को गढ़ता है, उसे बढ़ावा देता है और उससे मुनाफ़ा कमाता है. इस दिशा में ज़रूरी और वांछित बदलाव लाने के लिए, समाज में शक्ति और धन की एकाग्रता के बजाय, समानता व मानव अधिकारों के लिए प्रतिबद्धता, रणनीतिक हस्तक्षेप और अथक प्रयासों की आवश्यकता है. भारत में, बालकों के साथ श्रम क्षेत्र में होने वाले शोषण, दासता यानी गुलामी, कुछ सामाजिक समुदायों की लड़कियों के लैंगिक शोषण से जुड़ी बुरी सामाजिक परंपराओं और देवदासी प्रथा जैसे मंदिर–आधारित बाज़ारू लैंगिक शोषण के ख़िलाफ़ कानून बहुत पुराने हैं, लेकिन अधिकतर लागू नहीं किए जाते.