गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग पत्नी से बलात्कार करने के मामले में आरोपी को दी गई सजा को रद्द किया, कहा, अदालत द्वारा हस्तक्षेप न करने से महिला और दो बालक अपने पति/पिता के आश्रय से वंचित हो जाएंगे
तारीख: 07 अक्टूबर, 2021
स्रोत (Source): लाइव लॉ
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स्थान : गुजरात
गुजरात हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते नाबालिग पत्नी से बलात्कार करने के मामले में आरोपी एक व्यक्ति को दी गई सजा को रद्द करते हुए कहा कि अदालत द्वारा हस्तक्षेप न करने से महिला और दो बालक अपने पति/पिता के आश्रय से वंचित हो जाएंगे और जो न्याय के हित में नहीं होगा. इसी के साथ हाईकोर्ट ने इस व्यक्ति को दोषी करार देने वाले निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया. इस मामले में, कथित पीड़िता (पत्नी) ने स्वीकार किया है कि वह स्वंय ही दोषी/अपीलकर्ता के साथ उसकी पत्नी के रूप में रहने लगी थी और उसने उसके दो बालकों को भी जन्म दिया है. महत्वपूर्ण बात यह है कि न तो उसने और न ही दोषी/पति ने अपने दो बालकों के जन्म और पितृत्व से इनकार किया है.
पत्नी/महिला ने स्वीकार किया कि अपीलकर्ता/दोषी/पति ने उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे, हालांकि, 2018 में आरोपी पति के खिलाफ केस दर्ज किया गया और बाद में निचली अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 4, 6,8 और 12 के दोषी ठहराया था. न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय की खंडपीठ ने इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए इसे बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत अपराध कहा जा सकता है, हालांकि, उन्होंने ध्यान दिया कि इसके अनुपालन की तुलना में इसका उल्लंघन अधिक देखा गया है, खासकर समाज के निचले तबके में ऐसा होता है.
विशेष रूप से, अपीलकर्ता और ‘पीड़िता‘ मुकदमे के लंबित रहने के दौरान भी एक साथ रह रहे थे क्योंकि आरोपी व्यक्ति जमानत पर बाहर था और यहां तक कि निचली अदालत ने भी इस तथ्य पर ध्यान दिया था कि आरोपी व्यक्ति और ‘पीड़िता‘ एक दूसरे के साथ पति–पत्नी के रूप में रह रहे हैं और उनके बालक भी हैं. हालांकि, निचली अदालत ने फिर भी आरोपी/अपीलकर्ता को बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया. महत्वपूर्ण है कि मामले की सुनवाई विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो), जूनागढ़ के समक्ष की गई और ट्रायल कोर्ट ने दिनांक 15.07.2021 के फैसले के तहत अपीलकर्ता को उपरोक्त अपराधों के तहत दोषी ठहराया.
इससे पहले, अगस्त 2021 में, इस मामले की सुनवाई करते हुए, दोषसिद्धि के फैसले और इस व्यक्ति के खिलाफ पारित आदेश पर टिप्पणी करते हुए, न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय की खंडपीठ ने मौखिक रूप से गुजराती में कहा था किः ”पूरी तरह से दिमाग लगाए बिना ही कानून का कार्यान्वयन किया गया है … हमें ऐसे मामलों पर सामूहिक रूप से सोचना होगा. मुझे ट्रायल कोर्ट में दोष नहीं मिल रहा है क्योंकि वह कानून को लागू करने के लिए बाध्य थी, यहां तक कि अभियोजन पक्ष को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.”
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