‘तैयारी’ और ‘बलात्कार के प्रयास’ के बीच अंतर: सुप्रीम कोर्ट ने की व्याख्या
तारीख: 26 अक्टूबर, 2021
स्रोत (Source): लाइव लॉ
तस्वीर स्रोत : लाइव लॉ
स्थान : दिल्ली
दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के प्रयास के आरोपी व्यक्ति की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए बलात्कार करने के लिए ‘तैयारी’ और ‘प्रयास’ के बीच का अंतर समझाया. इस मामले में आरोपी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 511 के साथ पठित धारा 376(2)(एफ) के तहत दोषी ठहराया गया था. अपील में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे धारा 354 के तहत दोषसिद्धि में संशोधित किया और उसे दी गई सजा को कम कर दिया. हाईकोर्ट ने यह विचार किया कि उसने दोनों अभियोक्ता के साथ बलात्कार की कोशिश में सभी प्रयास नहीं किए, और वह तैयारी के चरण से आगे नहीं गया था.
राज्य सरकार द्वारा दायर अपील में उठाया गया मुद्दा यह था कि क्या आरोपी द्वारा किया गया अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 511 के साथ पठित धारा 376(2)(एफ) के तहत बलात्कार का प्रयास करने के बराबर है या यह एक मात्र ‘तैयारी’ थी, जिसके कारण पीड़िताओं का शील भंग हुआ? यह ध्यान दिया जा सकता है कि मौजूदा मामले में अपराध की घटना की तारीख 20.12.2005 है (जो कि पोकसो के अधिनियमन के लागू होने से पहले और 2013 में बलात्कार को पुनर्परिभाषित करने वाले आईपीसी के संशोधन से पहले की है.)
अदालत ने देखा कि इस बात के साक्ष्य हैं कि आरोपी नाबालिग लड़कियों को कमरे के अंदर ले गया था और उसने दरवाजे बंद कर लिये थे. फिर उसने लड़कियों और खुद के कपड़े उतार दिये, और पीड़ितों के गुप्तांग पर अपने जननांग रगड़े थे. यह भी पाया गया कि दोनों पीड़ित बालकों के बयान पूर्ण आत्मविश्वास से भरे थे और बेगुनाही को स्थापित करते हैं. उनके बयान मूल बयान हैं और इस बात की दूर-दूर तक संभावना नजर नहीं आती कि उनसे सिखा-पढ़ाकर बयान दिलाया गया.
“इन कृत्यों को जानबूझकर अपराध करने के उद्देश्य से किया गया था और तार्किक तौर पर अपराध के निकट थे. अभियुक्तों के कृत्य ‘तैयारी’ से परे चले गये थे और वास्तविक लैंगिक संबंध से ठीक पहले थे.” पीठ ने आगे कहा कि निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 511 के साथ पठित धारा 375 के दायरे में बलात्कार के प्रयास के रूप में दंडनीय अपराध के लिए सही दोषी ठहराया, क्योंकि यह घटना के समय लागू प्रावधान था.