लैंगिक अपराध की पीड़िता के पास एफआईआर रद्द करने के लिए अदालत जाने का कोई रास्ता नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
तारीख: 26 अगस्त, 2021
स्रोत (Source): लाइव लॉ
तस्वीर स्रोत : लाइव लॉ
स्थान : हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि लैंगिक अपराध की पीड़िता को लैंगिक उत्पीड़न के लिए दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने का कोई अधिकार नहीं हो सकता है. न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की खंडपीठ एक बलात्कार पीड़िता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में उसने आरोपी के खिलाफ उसके कहने पर दर्ज एफआईआर को इस आधार पर रद्द करने की मांग की थी कि अब उन्होंने (पीड़ित और आरोपी) ने शादी करने का फैसला कर लिया है.
लैंगिक उत्पीड़न की 20 वर्षीय कथित पीड़िता द्वारा आरोपी को एक पक्ष के रूप में आरोपित किए बिना दायर की गई थी. हालांकि, उसके हलफनामे द्वारा याचिका का समर्थन किया गया था. इसमें कहा गया था कि उसने आरोपी के साथ समझौता किया है. इन परिस्थितियों में कोर्ट ने याचिकाकर्ता–पीड़ित के लिए एक कानूनी सहायता वकील नियुक्त करना उचित समझा और उसके बाद न्यायालय को अवगत कराया गया कि पीड़ित के साथ उक्त बातचीत के आधार पर न्यायालय को एक आदेश पारित करना चाहिए.
पीड़िता द्वारा दायर की गई याचिका में किसी भी न्यायालय में साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जाना चाहिए और यहां तक कि उसकी ओर से स्वीकारोक्ति के रूप में भी नहीं लिया जाना चाहिए नतीजतन, कानूनी सहायता वकील के बयान के आधार पर मामले के विवरण में जाने के बिना अदालत ने आदेश दिया कि इस याचिका की सामग्री और याचिकाकर्ता के हलफनामे को किसी भी अदालत या किसी भी कार्यवाही के समक्ष सबूत के रूप में नहीं पढ़ा जाएगा. हालाँकि, न्यायालय ने इस प्रकार कहा: “अजीब बात है कि वर्तमान याचिका में आरोपी को एक पक्ष के रूप में पेश नहीं किया गया है.
इस प्रकार, आरोपी ने खुद पर कोई जिम्मेदारी नहीं ली है और न ही उसने किसी भी तथ्य को स्वीकार किया है. इस न्यायालय का मानना है कि पीड़िता एक लैंगिक अपराध के मामले में उसे लैंगिक उत्पीड़न के लिए दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने का कोई अधिकार नहीं हो सकता है.”
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